SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर स्वामी को केवल ज्ञान अपराह का समय है। वैशौख शुक्लपक्ष की दशमी का दिन होने के कारण धूप में पर्याप्त उष्णता आ गई है। फिर भी ज्येष्ठ मास के जैसी तेजी नहीं पाई है। वन एकदम शान्त है। उसमे पास के जृम्भक नामक गाव के कुछ थोड़े से पशु चरते हुए दिखलाई दे रहे है। पक्षी अपने-अपने बच्चों को घोसलो मे छोड़ कर आहार की खोज मे यत्र-तत्र गए हुए है। ऋजुकला नदी के जल पर पड़ती हुई सूर्य की किरणे उसके जल की नीलिमा को और भी अधिक चमका रही है। नदी के तट पर वन अत्यत सघन है। उसमे बड, पीपल, जामुन, पिलखन, शाल आदि के अनेक प्रकार के वृक्ष है, जिन पर अनेक प्रकार के पक्षी मीठा शब्द कर रहे है। नदी के तट पर शाल वृक्ष के नीचे पडी हुई एक शिला ऐसी सुन्दर दिखलाई दे रही है कि उसने एक प्रकार से नदी का घाट जैसा बनाया हुआ है। शिला लगभग अढाई गज लम्बी तथा दो गज चौडी है। वह सफेद पत्थर की बनी हुई और एकदम समतल है । शिला के ऊपर एक महापुरुष पद्मासन से विराजमान है । उनके शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं है । उनका शरीर तप के कारण अत्यत दुर्बल हो गया है। आज भी वह दो दिन के उपवास से है। उनके नेत्र आधे मुदे तथा प्राधे खुले हुए है। उनकी दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर लगी हुई है। वह एकदम ध्यान में लीन है। इस समय वह अपने प्रात्मा के द्वारा अपने प्रात्मा का साक्षात्कार कर रहे है । यह महापुरुष भगवान् महावीर स्वामी है। उस समय शीतल मन्द सुगन्ध पवन चल रही थी। वृक्षो मे नई कोपले निकल रही थी, फूल फूल रहे थे और वसन्त ऋतु की शोभा सारे वन में छा रही थी कि अचानक एक ओर से घु घरू का शब्द आया। क्रमश भगवान् के सन्मुख अनेक सुन्दर देवाङ्गनाएं आई । उन्होने भूगवान् के सम्मुख डटकर
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy