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________________ सेनापति जम्बूकुमार इसी समय दौवारिक ने राजसभा मे प्रवेश करके कहा"सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय हो।" सम्राट्क्या है दौवारिक । दौवारिक–देव | केरल देश के विद्याधर राजा मृगाक का एक दूत सम्राट् की सेवा मे उपस्थित होना चाहता है। सम्राट-उसे अत्यन्त आदरपूर्वक लिवा लामो । सम्राट् के यह कहने पर दौवारिक वापिस चला गया। उसके जाने के थोड़े समय पश्चात् दक्षिण देश की वेषभूषा से भूषित एक अधेड व्यक्ति ने सभा में प्रवेश करके कहा "मगध सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय।" राजा-क्यो महाशय । कहिये हमारे सबधी राजा मृगाक ने हमारे लिये क्या संदेश दिया है। वह कुशलपूर्वक तो है। दूत-देव । विद्याधर राजा मृगाक अपने समस्त परिजनो सहित अत्यन्त कुशलपूर्वक है । किन्तु आजकल उनके ऊपर हसद्वीप (लका) के राजा रत्नचूल ने आक्रमण किया है । अतएव राजा मृगाक ने आपसे सहायता की याचना की है और आपके नाम यह पत्र दिया है । यह कहकर दूत ने एक पत्र राजा श्रेणिक के हाथ में दे दिया। पत्र पढकर राजा कुछ चिन्ता मे पड गये । तब महामात्य वर्षकार बोले इसमें चिन्ता की क्या बात है देव ! आप जम्बूकुमार के सेनापतित्व में सेना को अभियान करने की आज्ञा दे और अपने श्वशुर की सहायता करें।" सम्राट-मै यही सोच रहा था कि जम्बूकुमार को उसकी नियुक्ति के प्रथम दिन ही इतना बडा उत्तरदायित्व दिया जावे अथवा नही ? वर्षकार-मै तो इसमें कोई हानि नहीं देखता । फिर इस प्रका जम्बू कुमार को भी अपनी योग्यता दिखलाने का अवसर मिल जावेगा । इस पर जम्बूकुमार ले उठकर कहा २२४
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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