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________________ चेलना से विवाह सुरंग में अधकार देख कुछ घबरा सी गई। ज्येष्ठा बडी थी और समझदार भी अधिक थी। उसने मनमे सोचा कि मुझे इस मार्ग से जाना उचित नहीं है। वह अभयकुमार से बोली___ "श्रेष्ठिवर्य | आप चेलना को लेकर तनिक इस सुरग के मार्ग से आगे बढे । मैं अपना रत्नहार लेती आऊँ, वह मुझे बहुत प्यारा है ।" यह कहकर ज्येष्ठा तो वहा से चली गई, किन्तु अभयकुमार ने चेलना को तुरत ही अदर रखी हुई एक छोटी सी डोली मे बिठला लिया। वह चारो जन अपनी कोठरी तथा मुरग के मार्ग को अन्दर से बन्द करके उस डोली को स्वय ही उठा कर ले चले। क्रमश वह लोग सुरग से बाहिर आ गये । यहा अत्यन्त तेज घोडो वाले रथ उनके लिये तैयार खडे थे। वह उन रथो पर बैठकर अत्यन्त तेजी से राजगृह नगर की ओर चले। रथ के थोडी दूर आगे बढ़ने पर कुमारी चेलना को अपने माता-पिता की याद सताने लगी और वह रोकर कहने लगी "श्रेष्ठिवर्य | मुझे अपनी माता की याद आ रही है। आप मुझे वापिस वैशाली ले चले।" यह सुनकर अभयकुमार बोले "राजकुमारी | अब तो पीछे वापिस लौटना किसी प्रकार सभव नहीं है। क्योकि तुम्हारे पिता हमारे बिना कहे आने पर रुष्ट होकर हमारे साथ तुमको नी जान से मरवा देंगे । इसलिये तुम मन मे थोडा धैर्य धारण करो। जब तुम कामदेव के समान सुन्दर राजा श्रेणिक के दर्शन करोगी तो तुम सारे दुख भूल जाओगी।" यह सुनकर कुमारी चेलना ने रोना बन्द कर दिया और वह लोग राजगृह की ओर अपनी यात्रा पर चल दिये। इस समय वैशाली की सेनाए मगध पर चढी जा रही थी। वह बडी शीघ्रता से गंगातट पर एकत्रित हो रही थी। इन लोगो के श्रेष्ठिवेष के कारण इनको वणिक् समझ कर इनसे कोई भी नही बोला । क्रमश. यह लोग गगा नदी को नावो पर पार करके मगध राज्य मे कुशलपूर्वक आ पहुचे। यहा से २१६
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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