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________________ रत्नों का व्यापारी इस राजमन्दिर के समीप किसी मकान मे ठहरने की अनुमति दी जावे।" इस पर राजा चेटक ने हमको अपने राजभवन के पास उसी हर्म्य मे ठहरने की अनुमति दे दी, जिसमे पहिले भरत चित्रकार रहा करता था। प्रव हम अपने समस्त सामान तथा सेवको सहित उस मकान मे आ गये है। हमारा विचार इस स्थान पर एक चैत्यालय बनवाने का है, जिससे हम यहा अत्यन्त समारोहपूर्वक जिनेन्द्र भगवान् का पूजन नित्य कर सके । सूचनार्थ निवेदन है। भवदीय "रलप्रकाश" रत्नप्रकाश ने इस पत्र को एक चर के द्वारा राजगृह के महामात्य वर्णकार के पास भेज दिया। रत्नप्रकाश ने पाच-सात दिन के अन्दर ही अपने निवास स्थान मे एक अत्यन्त मनोहर चैत्यालय बनवा लिया। अब वह उसमे अत्यन्त समारोहपूर्वक जिन भगवान् का पजन प्रात साय करने लगे। कभी तो वह बडे-बडे मनोहर स्तोत्रो से भगवान् की स्तुति किया करते थे। कभी-कभी वह उन सेठो के साथ जिनेन्द्र भगवान् का पूजन किया करते थे। कभी-कभी तो उनको पूजन करते-करते ऐसा आनन्द आ जाता कि वह कृत्रिम तौर से भगवान् के सामने नृत्य भी करने लगते थे। कभी-कभी वह अपनी स्तुति-प्रार्थना आदि मे उत्तमोत्तम शब्द करने वाले बाजो का प्रयोग भी किया करते थे। कभी वह जैन पुराणों को भी जोर-जोर से बाचा करते थे। जिस समय वह इस प्रकार भजन, पूजन आदि किया करते तो उनका शब्द रनवास मे बराबर जाया करता था। इससे इनके स्तोत्र आदि को राजमहल की महिलाए भी सुना करती और मन ही मन उनकी जिन-भक्ति की प्रशसा किया करती थी।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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