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________________ चित्र पर आसक्ति का ध्यान तक न था। इसका रूप तो मुझे वरबस अपनी ओर खैचे लेता है। ऐसा जान पडता है जैसे इमके केशो की माग का जाल कामी पुरुषो के लिये वास्तविक जाल है। उसके सिर का चूडामणि उसकी शोभा को और भी अधिक बढा रहा है। इस चडामणि से युक्त यह केशराशि तो उत्तम रत्नयुक्त एक काले नाग से प्रतिस्पर्धा कर रही है। इसके माथे पर लगी हुई यह चमकदार बिन्दी इसके रूप की शोभा को दुगना बढा रही है। इससे इसका मुख ऐसा लगता है जैसे आकाश मे पूर्ण चन्द्रमा खिला हुआ हो । इसके भ्रूभग से इसके ललाट पर जो ओकार मा बन गया है वह ओकार न होकर जगद्विजयी कामदेव का बाण जैसा दिखलाई देता है। इसके नेत्र का कटाक्ष कामीजनो को उसी प्रकार वश मे कर लेता है, जैसे सगीत मृगो को अपने वश मे कर लेता है। इसके कानो मे पडे हुए दोनो कुण्डल ऐसे सुन्दर दिखलाई देते है, जैसे सूर्य और चन्द्रमा दोनो उमकी सेवा करने को उसके कान मे आकर लटक गये हो । इसके नेत्र कमल के समान सुन्दर तथा मृगी के समान चचल है । इसका मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान मुन्दर दिखलाई देता है। किन्तु जब यह बोलती होगी तो इसका मुख आकाश की शोभा को धारण करता होगा। इसके मुख म पान की लाली बादलो की लालिमा की, दाँतो की चमक चन्द्र-किरण की तथा इसका शब्द मेघध्वनि की समानता करते होगे । इसकी गर्दन मे पड़ी हुई तीनो रेखाए कैसी सुन्दर है । इसके वक्षस्थल की सुन्दरता का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता । इसकी नाभि की गहनता एक ऐसे तालाब का भ्रम उत्पन्न करती है, जिसमें कामदेवरूपी हस्ती गोता लगाकर बैठ गया हो, अन्यथा उसमे रोमावलीरूप भ्रमरपक्ति कहा से आ जाती। इसके कमल के समान मनोहर कर अति मनोहर दीख पडते है। कटिभाग तो इसका बहुत ही पतला है । इसके कोमल चरणो में पडे हुए नूपुर इसकी शोभा को और भी अधिक बढ़ा रहे है । यदि मुझे इसका परिचयन मिल गया होता तो इसके मनोहर रूप को देखकर मै यही सोचता कि ऐसी अतिशय शोभायुक्त यह कन्या कोई किन्नरी है अथवा विद्याधरी ? यह रोहिणी है अथवा कमलनिवासिनी कमला ? यह इन्द्राणी है अथवा कोई २०१
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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