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________________ श्रेणिक बिम्बसार भारी आचार्य थे । वह तीनो अपने एक सहसू शिष्यो सहित भगवान् के शिष्य हो गए। भगवान् ने दूसरा चातुर्मास्य राजगृह में किया। इस बार समाट् श्रेणिक बिम्बसार तथा बहुत से ब्राह्मणो ने बौद्धमत ग्रहण किया। इसी बीच उन्होने सारिपुत्र और मौद्गलायन नामक भिक्षुओ को शिष्य बनाकर उन्हे अपने सब शिष्यो मे प्रधानता दी। बाद मे उन्होने अनेक विद्वानो, तपस्थियो और राजाओ को अपने मत की दीक्षा दी । दीक्षित भिक्षुओ के लिए 'विहारों' की स्थापना की गई। गौतम बुद्ध ने भिक्षुओ के अलावा बाद मे स्त्रियो को भी भिक्षुणी होने का अधिकार दिया । स्त्रियो के लिए पृथक् 'विहार' बनाए गए । इन विहारो के लिए बुद्ध ने विस्तृत नियम स्वय बनाए। ___ मगध के उत्तर मे उन दिनो मौ लिच्छावी तथा नौ मल्ल राजाओ का एक गणतन्त्र राज्य था, जिसकी राजधानी वैशाली थी। राजगृह तथा वैशाली दोनो ही बुद्ध के समय बौद्ध मत के प्रधान केन्द्र थे । यद्यपि वैशाली लिच्छावी गणतन्त्र के प्रधान राजा चेटक जैनी थे, किन्तु वैशाली मे बुद्ध के मत का प्रचार राजगृह से कम नहीं था। बुद्ध के समय बौद्धमत की कीति इतनी अधिक फैली कि वह उनकी जन्मभूमि कपिलवस्तु से भी आगे निकल गई। बुद्ध प्रत्येक देश में पैदल घूम-घूम कर अपने मत का प्रचार करने लगे। ____ भगवान् बुद्ध ने जिस तत्वज्ञान का उपदेश किया, उसको चार आर्य सत्य कहा जाता है । वह यह है-१ सब कुछ क्षणिक तथा दुःख रूप है । २ ससार के क्षणिक पदार्थों की तृष्णा ही दुखो का कारण है, ३ उपादान सहित तृष्णा का नाश होने से ही दुखो का नाश होता है। ४ हृदय से अहभाव और राग-द्वेष 'की सर्वथा निवृत्ति होने पर निर्वाण की प्राप्ति होती है। भगवान् बुद्ध ने साधन के आठ अग बतलाए है। उनको आर्य अष्टाङ्ग मार्ग कहा जाता है। वह यह है-१ सत्य विश्वास, २ नम् वचन, ३ उच्च लक्ष्य, ४ सदाचरण, ५ सद्वृत्ति, ६ सद्गुणो मे स्थिति, ७ बुद्धि का सदुपयोग तथा ८ सद्ध्यान । भगवान् बुद्ध ने धर्म-प्रचार के लिये अत्यधिक प्रयत्न किया और कष्ट भी कम नही सहे। १६२
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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