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________________ जाता था । उसके प्रधान उन दिनो राजा सिद्धार्थ थे । जैनियो के अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर उन्ही राजा सिद्धार्थ के पुत्र थे । वैशाली बहुत बडा नगर था । उसके तीन भाग थे । रामायण मे लिखा है कि वैशालिक वंश के संस्थापक इक्ष्वाकु राजा श्रलम्बुष के पुत्र विशाल थे । पुराणो मे भी उनको वशधर माना गया है । इसी कारण लिच्छवियो को शुद्ध क्षत्रिय माना जाता था । उनको पनी वशशुद्धि का अभिमान भी कम नही था । यह लोग जैन तथा बौद्धो के बराबर सहायक रहे । इसीलिये वैदिक परिपाटी वालो ने उनको द्वेषवश व्रात्य क्षत्रिय लिखा है । वैशाली के तीन जिले थे- वैशाली, कुण्डपुर ( कोल्लाग या कुण्डलपुर ) तथा वाणिज्य ग्राम । तिब्बती मत के अनुसार इन तीनो मे क्रमश ७०००, १४००० तथा २१००० मकान थे । वृजि लोगो में प्रत्येक गाव के सरदार को राजा या राजुक कहा जाता था । लिच्छवियों के ७७०७ राजा थे और उनमे से प्रत्येक उपराज, सेनापति और भाण्डागारिक ( कोषाध्यक्ष) भी था । वैशाली के खण्डहर अब भी मुजफ्फरपुर से पश्चिम की ओर को जाने वाली पक्की सडक पर वहा से अठारह मील दूर 'वैसोढ' नामक एक छोटे से गाव मे देखे जा सकते है । श्रब से लगभग अढाई सहस्र वर्ष पूर्व यह एक अत्यंत विशाल नगर था । उसके चारो ओर तिहरा परकोटा था । यह नगर प्रत्यत संमृद्ध था । उरामे ७७७७ प्रासाद, ७७७७ कूटागार, ७७७७ प्राराम और ७७७७ पुष्कररिया थी । उन दिनो समृद्धि मे उस नगरी की समानता भारत का कोई नगर नही कर सकता था । उन दिनो यह गरणतत्र पूर्वी भारत मे एक मात्र प्रदर्श तथा शक्तिशाली सघ था । इसीलिये यह प्रतापी मगध साम्राज्य की साम्राज्यविस्तार भावना मे सबसे बडी राजनीतिक तथा सामरिक बाधा था । वैशाली नगर के चारो ओर काष्ठ के तीन प्राकार बने हुए थे, जिनमे स्थान-स्थान पर गोपुर तथा प्रवेशद्वार बने हुए थे । गोपुर इतने ऊचे थे कि उनके ऊपर खडे होकर मीलो तक के दृश्य को देखा जा सकता था । इनके ऊपर खडे होकर प्रहरीगरण हाथो मे पीतल के तूर्णं लिये हुए पहरा दिया करते थे । वज्जी महाजनपद वत्स, कोशल, काशी तथा मगध जनपदो के बीच मे घिरा हुआ था । यह श्रावस्ती से राजगृह जाने वाले मार्ग पर पडने के कारण 23
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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