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________________ श्रेणिक बिम्बसार अवकाश न देकर उस बात को उस समय टाल दिया, जिससे इस विषय के ऊच-नीच परिणामो पर आपके साथ विचार-विनिमय किया जा सके।" "तो इस सम्बन्ध मे आपका क्या विचार है ?" "मै मगध की शक्ति को आपके विवाहो द्वारा बढाना चाहता हू । इसी लिये मैने आपके राजगद्दी पर बैठते ही अप्रत्यक्ष रीति से यत्न करके आपके लिये केरल के राजा मृगाक की पुत्री वासवी अपरनाम विलासवती के विवाह का यत्न किया था । आशा है कि यह विवाह शीघ्र ही होगा।" ___ "इस विषय मे तो मुझे आपकी राजनीति की वास्तव मे प्रशसा करनी पडेगी । आपके यत्न से उसने अत्यन्त विनयपूर्वक अपनी कन्या के विवाह का प्रस्ताव हमारे पास भेजा था और हमने भी इसीलिये अत्यन्त सम्मानपूर्वक उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। किन्तु स्थान दूर होने के कारण विवाह अभी तक भी टलता ही जा रहा है।" ___ "इसी प्रकार मै इस विवाह को अस्वीकार करना नही चाहता। आज मगध तथा कोशल दोनो ही महाजनपद साम्राज्य बढाने के मनसूबे बॉव रहे है। दोनो ही एक दूसरे पर आक्रमण करने की योजना बना रहे है । यदि दोनो मे से किसी ने एक दूसरे पर आक्रमण किया तो दोनो के नष्ट हो जाने का अदेशा है, किन्तु इम विवाह के सम्पन्न हो जाने पर दोनो ओर एक-दूसरे पर आक्रमण की सभावना नष्ट हो जावेगी । तब हम दोनो अपने-अपने प्रभावक्षेत्र को बॉटकर उसमे स्वतन्त्रतापूर्वक अपने २ पैर फैला सकेगे। हित के अतिरिक्त इस विवाह से हमको हानि किसी प्रकार की नही है । अतएव आप इस सम्बन्ध को तुरन्त स्वीकार करले । आप देख चुके है कि विवाह-सम्बन्धो द्वारा राजा चेटक आज कैसी प्रबल शक्ति बन गया है। हमको भी इस उदाहरण से शिक्षा लेनी चाहिये।" 'अच्छा वर्षकार | मझे आप की सम्मति स्वीकार है। कल कोशल के राजपुरोहित का राजसभा में सार्वजनिक सम्मान करके उनसे तिलक लेकर मुझे चढवा दो।" १५८
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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