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________________ श्रमण गौतम कर लिय. कि मुझे सभी की मायाममता छोडकर चले जाना चाहिये और आज ही जाना चाहिये। उस समय राजमहल के सभी दास-दासिया सो चुके थे। राजकुमार ने धीरे से वाहिर निकल कर अपने प्रिय सहचर छन्द को जगा कर उसे अपने प्यारे घोडे कन्थक को तैयार करने का आदेश दिया। अब वह एक बार फिर अपने शयन कक्ष में गए । उनकी प्रियतमा पत्नी यशोधरा उस समय गाढ निद्रा में सो रही थी। उनका नन्हा सा पुत्र राहुल भी अपनी माता की बगल मे पडा हुआ सो रहा था। उन दोनो को देख कर एक बार राजकुमार के मन मे यह विचार आया कि वह अपने घर छोड़ने के विचार को बदल दे । किन्तु फिर वृद्धावस्था, रोग तथा शव का ध्यान हो आया और वह वहा ने निक्ल तथा कन्थन पर सवार हो कर नगर से वाहिर आ गए। गजनुनार सिद्धार्थ कपिलवस्तु से निकल कर घोडे पर बैठ कर जगल मे पूर्व दिशा ी ओर चले । वह बरावर चलते ही गए, क्योकि उनको भय था कि पता चलने पर घरवाले उनको टू डकर ले जावेगे । वह रोहिणी नदी को पार कर कोलियो के राज्य तया पाना से भी आगे निकल गए। जन्त मे अनोमा नदी के किनारे जाकर उन्होने अपने राजमी आभूपण उतार दिये । रहा उन्होंने अपने सेवक छन्द से कहा- 'छन्द । बम मेरा और तुम्हारा यही नक का नाप था। अब तुम दम स्वामिभक्त घोडे को लेकर कपिलवस्तु लौट जाओ। यह अपने आभूरण तथा राज-चिह्न मै तुमको देता हूँ।" ऐमा न कीजिये स्वामिन् । यदि आप घर नही चलने तो मुझीको सेवा में रहने दीजिये।" "नहीं छन्द | अब मैने सभी मासारिक नाते तोड दिये है । मै तो इस शरीर से भी ममता छोडना चाहता ह । तुम्हारे रहने से मेरे मार्ग में बाधा आदेगी। तुम यहा से शीघ्र ही चले जाओ।" अन्त मे अपनी एक भी न चलती देखकर सेवक घोडे को लेकर वहा से चला गया। सेवक और घोडे के चले जाने पर सिद्धार्थ ने अपने शिखा और सूत्र उतार कर अनोमा नदी मे ही बहा दिये। जब सिद्धार्थ वहाँ से कुछ और दूर चले तो उनको एक निर्धन आदमी मिला। १४७
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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