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________________ जन्म लिया । सभवत अपने पुत्र के प्रभाव के कारण बाद में वह जैनी हो गए। इसी से उनका उत्साह सैन्य संगठन मे नही रहा और बाद मे शतानीक शत्रुजित् ने उन्हें पराजित कर दिया । किन्तु काशीराज ने विभिन्न काल मे कोशल, अश्मक, अग तथा मगध तक को पराजित किया था। काशी राज्य के पश्चिम मे वत्स राज्य, उत्तर मे कोशल राज्य तथा पूर्व में मगध राज्य था । समय-समय पर वत्सो, कोशलो तथा मागधो ने भी काशी को जीता । बुद्ध से लगभग १५० वर्ष पूर्व ब्रह्मदत्तवशीय काशी नरेश ने कोशल पर विजय प्राप्त की । ईसा पूर्व ६७५ तक काशी का अच्छा प्रभाव बना रहा । 1 ४ कोशल—– कोशल राज्य वर्तमान श्रवध प्रात मे था । पहिले इसकी राजधानी अयोध्या थी, जो सरयू नदी के किनारे पर थी । बौद्ध काल में अयोध्या का प्रभाव घटने पर श्रावस्ती उसकी राजधानी हुई । श्रावस्ती श्रचिरावती (राप्ती) नदी के तट पर स्थित थी । ईसा पूर्व सन् ५३३ से कोशल की गद्दी पर प्रसेनजित् बैठा । वह इक्ष्वाकुवशीय क्षत्रिय था । उसने अपनी प्रधान राजधानी श्रावस्ती ही बनाई | साकेत श्रावस्ती से ४५ मील उत्तर को थी । साकेत सरयू नदी के किनारे पर ही बसा हुआ था । अतएव वह स्थल व्यापार के अतिरिक्त नौ-व्यापार का भी मुख्य केन्द्र था । उन दिनो सरयू का विस्तार डेढ मील का था और उसमे बडे-बडे पोत चला करते थे । महाराज प्रसनजित् का साकेत मे भी एक राजमहल तथा किला था । श्रावस्ती में उन दिनो समस्त जम्बूदीप की सम्पत्ति एकत्रित थी । वहा अनेक धनकुवेर निवास करते थे, जिनके साथ जम्बूद्वीप के अतिरिक्त ताम्रलिप्ता नदी के मार्ग द्वारा पूर्व में बंगाल की खाडी तथा पश्चिम में भरुकच्छ तथा शूर्पारक के मार्ग से अरब सागर को पार कर लक्षद्वीप, मालद्वीप तथा सुदूर पश्चिम के अन्य द्वीपो मे व्यापार करके जम्बूद्वीप की सम्पदा का विस्तार किया करते थे । इनके अतिरिक्त एक मार्ग श्रावस्ती से प्रतिष्ठान तक जाता था । उस मार्ग में माहिष्मती, उज्जैन, गोनर्द, विदिशा, कौशाम्बी तथा साकेत पढते थे । श्रावस्ती से एक सरल मार्ग राजगृह को पार्वत्य प्रदेश में होकर जाता था । इस मार्ग मे सेतव्य, कपिलवस्तु, कुरिनारा, पावा, हस्तिग्राम, भण्डग्राम, वैशाली, पाटलीपुत्र और नालन्द पड़ते थे। नदियो से उन दिनो व्यापार का कार्य अधिक लिया • ११
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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