SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिता-पुत्र की भेंट ommmmmmmmmmmmmmmmmmm कुमार ने सम्राट् से कहा "पिता जी | मेरी आपसे एक प्रार्थना है। यदि बाज्ञा हो तो निवेदन सम्राट् श्रेणिक अत्यन्त प्रसन्न होकर बोले"अवश्य कहो बेटा ! क्या कहना चाहते हो।" तब अभयकुमार ने कहा "पिता जी | मेरा निवेदन यह है कि यह नन्दिग्राम के विप्र आपकी सेवा मे आये है । यदि उन्होने कभी अनजाने में कोई अपराध कर भी दिया तो आप अपने बड़प्पन का ध्यान करके इन्हे क्षमा कर दें। मेरी आपसे यह विनय है। मै उनको अभयदान दे चुका हूं।" अभयकुमार के यह शब्द कहते ही नन्दिग्राम के ब्राह्मण भी सम्राट् के चरणो मे गिर पडे और उनसे विनयपूर्वक क्षमा मांगने लगे। तब सम्राट बोले "अच्छा, कुमार' जब तुम इनको अभयदान दे चुके हो तो हम भी इनको अभय करते है।" फिर सम्राट ने ब्राह्मणो की ओर मुख करके कहा "विप्रगण | आप प्रसन्नता से नन्दिगाम चले जावे। अब आपको किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नही। आपके किसी अधिकार में किसी प्रकार की भी कमी नही की जावेगी।" महाराज के यह शब्द सुनकर ब्राह्मणो ने कहा "सम्राट् की जय हो, कुमार अभय की जय हो। हमे आपने नवीन जीवन दान दिया। आपका कल्याण हो।" इस प्रकार नन्दिग्राम के ब्राह्मण वहाँ से अत्यन्त प्रसन्न होते हुए अपने गाँव चले गए।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy