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________________ बुद्धि-चातुर्य दूत महाराज की यह आज्ञा पाते ही गिरिव्रज से चलकर नन्दिग्राम आया। उसने उनको महाराज द्वारा दी हुई लकडी देकर कहा "मगध-समाट ने आपके पास यह लकडी भेजी है। आप बतनावे कि इसका कौन सा भाग अगला है और कौन सा पिछला। यह परीक्षा कर शीघ्र भेजे । अन्यथा नन्दिग्राम छोडकर चले जाएँ ।” दूत के मुख से महाराज का यह सदेश पाकर नन्दिग्राम के ब्राह्मणो का मस्तक घूमन लगा । वे सोचने लगे कि समाट् के कोप से अब की बार बचना कठिन है । अब हम किसी प्रकार भी नन्दिग्राम में नही रह सकते। वे दूत को बिदा कर सीधे कुमार के पास गए। उनको महाराज का सदेश सुनाकर उन्होने वह लकडी भी उनके सामने रख दी। इस पर कुमार बोले "आप लोग महाराज की इस आज्ञा से तनिक भी न डरे। मै अभी इसका प्रतीकार करता हूँ।" इस प्रकार कहकर वह ब्राह्मणो को लेकर फिर तालाब के किनारे गए। वहा जाने पर उन्होने वह लकडी तालाउ मे डाल दी। लकडी पानी मे पडकर बहने लगी। तब कुमार बोले "लकडी जब पानी में बहती है तो उसका मूल भाग आगे को और दूसरा भाग पीछे को रहता है। तुम इस भेद को समझ कर राजा को भी जाकर समझा दो।" अब तो ब्राह्मण प्रसन्न हो गए। वह उस लकडी को लेकर तुरन्त गिरिव्रज आए और राजा के सामने जाकर उन्हे उसके विषय में सतुष्ट कर लकडी का ऊँचा तथा नीचा भाग बतला दिया। महाराज अपने इस प्रश्न का उत्तर भी ठीक-ठीक पाकर क्रोध मे भर गए । उन्होने एक क्षण विचार कर एक सेवक को बुलाकर उसके हाथ में कुछ तिल देकर उससे कहा"नन्दिग्राम के ब्राह्मणो से कहना कि महाराज ने यह तिल भेजे है। जितने १२३
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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