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________________ १८ गिरिव्रज पर आक्रमण' गिरिव्रज के प्रतिनिधि मण्डल के चले जाने के बाद राजकुसार ने अपनी अग-रक्षक सेना को आज्ञा दी कि चलने की तैयारी इस प्रकार की जावे कि पहर भर रात बीतने पर गिरिव्रज को प्रस्थान कर दिया जावे। अभयकुमार इस समय सात वर्ष का हो चुका था । उन्होने उसको यह आदेश दिया कि वह माता सहित अभी वही ठहरे और कुछ दिन बाद गिरिव्रज आवे । इस प्रकार पूर्ण प्रबन्ध करके राजकुमार ने पहर भर रात बीतने पर अपने पाच सौ सैनिको को लेकर गिरिव्रज के लिये प्रस्थान किया । उनके सैनिको में इस समय बडा भारी उत्साह था । उन्होने राजकुमार के निर्वासन काल भर बडा कष्ट उठाया था । उनको आशा थी कि गिरिव्रज पर अधिकार होने पर उनको अच्छे से अच्छा जीवन व्यतीत करने का अवसर मिलेगा । यद्यपि राजकुमार जानते थे कि गिरिव्रज पर अधिकार करते समय उनको विशेष कठिनाई न होगी, किन्तु उनके सैनिक यह निश्चय किए हुए थे कि वह अपने से दसगुनी सेना का मुकाबला करने मे भी पीछे नही हटेगे । वह लोग नदी, खेतो तथा नन्दिग्राम का पीछे छोड़ते हुए पहर भर रात रहते गिरिव्रज के द्वार पर जा पहुँचे । वहा उन्होने द्वारपाल से द्वार खोलने को कहा, तो उसने पूर्वं निश्चय के अनुसार तुरन्त फाटक खोल दिया । राजकुमार नगर मे प्रवेश करके सर्वप्रथम राज्यसभा तथा राजमहल पर अधिकार किया । नगर के सब फाटको पर उनके अपने विश्वासी रक्षक रखे गए । दिन निकलने से पूर्व उनका रक्त की एक भी बूद बहाए बिना सारे नगर पर अधिकार हो गया । ד इस गडबड मे चिलात की आख खुली तो उसने महल की सारी व्यवस्था को बदली हुई पाया । उसने तुरन्त एक दासी को बुलाकर उससे पूछा १०५
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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