SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७१) • वादसेती नाता तोरे चांदीकोसो सोधा है । जानेजाही ताहीन के मानेराही पाहीपीके, ठानेवातें डाही ऐसो धारावाही वोधा है ॥ ५॥ जिन्हकेजु द्रव्य मिति साधत छखंड थिति, विनसे विभाव अरि पंकति पतन है । जिन्हकेजु भक्तिको विधान एड नौ निधान, त्रिगुणके भेद मानो चौदह रतन है । जिन्हके सुत्रुद्धिराणी चूरे महा मोह वज, पूरे, मंगलीक जे जे मोक्षके जतन है ॥ जिन्हके प्रणाम अंग सोहे चमूं चतुरंग, तेइ चक्रवर्ति धनु धरे ये अतन है ॥ ६ ॥ श्रवण कीरतन चिंतवन, सेवन वेदन ध्यान । लघुता समता एकता, नौधा भक्ति प्रमाण ॥७॥ ३१ सा-कोऊ अनुभवी जीव कहे मेरे अनुभौमें, लक्षण विभेद भिन्न करमको जाल है । जाने आप आपकोजु आपकरी आपविखे, उतपति नाश ध्रुव धारा असराल है। सारे विकलप मा सो न्यारे सरवथा मेरे, निश्चय स्वभाव यह व्यवहार चाल है । मैंतो शुद्ध चेतन अनंत चिनमुद्रा धारि, प्रभुता हमारि एकरूप तिहूं काल है ॥ ८॥ निराकार चेतना कहावे दरशन गुण, साकार चेतना शुद्ध गुण ज्ञान सारे है ।। चेतना अद्वैत दोउ चेतन दरव माहि, सामान्य विशेष सत्ताहीको विसतार है ॥ कोड कहे चेतना चिन्ह नाहीं आतमामें, चेतनाके नाश होत त्रिविधि विकार है ॥ लक्षणको नाश सत्ता नाश मूल वस्तु नाश, ताते जीवं दरवको चेतना आधार है ॥९॥ चेतन लक्षण आतमा, आतम सत्ता मांहि। सचा परिमित वस्तु है, भेद तिहू में नाहि ॥१०॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy