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________________ अन कवि लघुता वर्णन ॥ सवैया ॥ ३१ सा. जैसे कोऊ मूरख महासमुद्र तरिवेको, भुनानिसो उद्यूत मयोहै तजि नावरो॥ जैसे गिरि परि विरखफल तोरिवेको, वामन पुरुप कोऊ उमगे उतावरो ॥ जैसे जल कुंडमें निरखि ससि प्रतिवित्र, ताके गहिवेको करनीचोकरे टावरो ॥ तैसे मैं अलपत्राद्ध नाटक आरंभ कीनो, गुनीमोही हँसेंगे कहेंगे कोऊ वावरो ॥ १२ ॥ - जैसे काहू रतनसौ वींच्यो है रतन कोऊ, तामें सूत रेसमकी डोरी पोयगई है ॥ तैसे वुद्धटीकाकरी नाटक सुगमकीनो, तापरि अलपवुद्धि सुधी परनई है। जैसे काहू देशके पुरुष जैसी भाषा कहै, तैसी तिनहूके बालकनि सीखलई है ।। तैसे ज्यौ गरंथको अरथ को गुरु त्योंही, मारी मति कहिवेको सावधान मई है ॥ १३॥ __ कबहू सुमति व्है कुमतिको विनाश करै, कबहू विमलज्योति अंतर जगतिहै ।। कवहू दयाल व्है चित्त करत दयारूप, कबहू सुलालसा न्है लोचन लगति है ॥ कबहू कि आरती व्है प्रभुसनमुख आवै, कबहू सुभारती म्है वाहरि वगति है ॥ धरेदशा जैसी तव करे रीति तैसी ऐसी, हिरदे हमारे भगवंतकी भगति है ॥ १४ ॥ ___ मोक्ष चलिवे शकोन कमरको करेवोन, जाके रस भान बुध लोनज्यौं धुलत है । गुणको गरंथ. निरगुणको सुगमपंथ, जाको जस कहत सुरेश अकुलत है । याहीके जु पक्षीते उड़त ज्ञानगगनमें, याहीके विपक्षी जगजालमें रुलत है ॥ हाटकसो विमल विराटकसो विसतार, नाटक सुनत हिये - फाटक खुलत है ॥ १५ ॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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