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________________ (५८) आलसीका अर उद्यमीका स्वरूप कहे है ॥ चौपाई. जो जिय मोह नींदमें सोवे । ते आलसी निरुद्यमी होवे ।। दृष्टि खोलि जे जगे प्रवीना । तिनि आलस तजि उद्यम कीना ॥ ८ ॥ आलसीकी अर उद्यमीकी क्रिया कहे है ॥ ३१ ता. . काच वांधे शिरसों सुमणि वांधे पायनीसों, जाने न गंवार कैसा मणि कैसा कांच है । यही मूट झूठमें मगन झूठहीको दोरे, झूठ बात माने पै न जाने कहां सांच है ।। मणिको परखि जाने जोहरी जगत माहि, सांचकी समझ ज्ञान लोचनकी जांच है। जहांको जु वासी सो तो तहांको परंम जाने जाको जैसो स्वांग ताको तैसे रूप नाच है ॥ ९॥ . . . . . - दोहा. . . . . बंध बढावे बंध व्है, ते आलसी अजान । मुक्त हेतु करणी करे, ते नर उद्यम वान ॥१०॥ जवलग ज्ञान है तवलग वैराग्य है ।। जवलग जीव शुद्ध वस्तुको विचारे ध्यावे; तवलग भोगसों उदासी सरवंग है ॥ भोगमें मगन तब ज्ञानकी जगन नाहि, भोग आमिलापकी दशा मिथ्यात अंग है ॥ ताते विषै भोगमें मगनासों मिथ्याति जीव, भोग सों उदासिसों समकिति अभंग है । ऐसे जानि भोरासों उदासि व्है सुगति साधे, यह मन चंगतो कठोठी माहि गंग है।॥ ११॥ . . . . . ... '. 'मुक्तिके साधनार्थ चार पुरुषार्थ कहे हैं ॥ दोहा. ... धर्म अथै अरु काम शिव, पुरुषारंथ चतुरंग । कुधी कल्पना गहि रहे, सुधी गहे सरवंग ॥ १२ ।
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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