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विचार अनगुप्त मन आनिये ॥ अनचित्यो अवहि अचानक कहांधा होय, ऐसो भय अकस्मात जगतमें जानिये ॥ ४८ ॥
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इंसभवके भय निवारणकूं मंत्र ( उपाय ) कहे हैं ॥ छप्पै छंद. नख शिख मित परमाण, ज्ञान अवगाह निरक्षत । आतम अंग अभंग संग पर धन इम अक्षत | छिन भंगुर संसार विभव, परिवार भार जसु । जहां उतपति तहां प्रलय, जासु संयोग वियोग तसु । परिग्रह प्रपंच परगट परखि, इहभव भय उपजे न चित । ज्ञानी निशंक निकलंक निज, ज्ञानरूप निरखंत नित ॥ ४९ ॥
परभवके भय निवारणकूं मंत्र ( उपाय ) कहे है ॥ छप्पै छंद. ज्ञानचक्र मम लोक, जासु अवलोक मोक्ष सुख । इतर लोक मम नांहि • नाहि, जिस मांहि दोष दुख । पुन्य सुगति दातार, पाप दुर्गति दुख 'दायक | दोऊ खंडित खानि मैं, अखंडित शिव नायक । इहविधि विचार परलोक भय, नहि व्यापत वरते सुखित । ज्ञानी निशंकं निकलंक निजं ज्ञानरूप निरखंत नित ॥ ५० ॥
मरणके भय निवारणकूं ( उपाय ) कहे है ।। छप्पै छंद.
फरस जीभ नाशिका, नयन अरु श्रवण अक्ष इति । मन वच, बल तीन, स्वास उस्वास आयु थिति । ये दश प्राण विनाश, ताहि जग : मरण कहीजे । ज्ञान प्राण संयुक्त, जीव तिहुं काल न छीजे । यह चित करत महि मरण भय, नय प्रमाण जिनवर कथित । ज्ञानी निशंक निकलंक निज, ज्ञानरूप निरखंत नित ॥ ५१ ॥
बेदनाके भय निवारणकूं मंत्र ( उपाय ) कहे है । छप्पै छंद. वेदनहारो जीव, जांहि वेदंत सोउ जिय । यह वेदना अभंग, सो तो
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