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________________ (४१) तो अभिअंतर दर्वित भावित, कर्म कलेश प्रवेश न पावे ॥ आतम साधि अध्यातमके पथ, पूरण व्है परब्रह्म कहावे ॥ ॥अब संवरका कारण सम्यक्त्व है ताते सम्यकदृष्टिकी महिमा कहे है ॥ २३ साभेदि मिथ्यात्वसु वेदि महा रस, भेद विज्ञान कला निनि पाई ॥ जो अपनी महिमा अवधारत, त्याग करे उरसों जु पराई ॥ उद्धत रीत वसे निनिके घट, होत निरंतर ज्योति सवाई ॥ ते मतिमान सुवर्ण समान, लगे तिनकों न शुभाशुभ काई ॥५॥ अब भेदज्ञान है लो संवरको तथा मोक्षको कारण है - . ताते भेदज्ञानकी महिमा कहे है ॥अडिल्ल. भेदज्ञान संवर निदान निरदोष है। संवर सो निरजरा अनुक्रम मोक्ष है । भेदज्ञान शिव मूल जगत महि मानिये। जदपि हेय है तदपि उपादेय जानिये ॥ ६ ॥ दोहा. भेदज्ञान तबलौं भलो, जबलौं मुक्ति न होय । परम ज्योति परगट जहां, तहां विकल्प न कोय ॥७॥ मुक्तिको उपाय भेदज्ञान है उसकी महिमा कहे है॥चौपाई. भेदज्ञान संवर जिन्ह पायो । सो चेतन शिवरूप कहायो॥ भेदज्ञान जिन्हके घट नाही । ते जड़ जीव वधे घट मांही ॥ ८॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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