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________________ (३४) अवलंब उनहीको उन मांहि है ॥ निरूपाधि आतम समाधि सोई शिव रूप, और दौर धूप पुद्गल परछांही है ॥ ८॥ .. अव शुभक्रियामें बंध तथा मोक्ष ये दोनूं है सो स्वरूप । बतावे है ॥ सवैया २३ सा. मोक्ष स्वरूप सदा चिन्मूरति, वंध मही करतूति कही है ।। जावत काल वसे जहँ चेतन, तावत सो रस रीति गही है | आतमको अनुभौ जबलों तवलों, शिवरूप दशा निवही है ॥ अंध भयो करनी जब ठाणत, वंध, विथा तब फैलि रही है ॥ ९ ॥ __ अव मोक्ष प्राप्तिका कारण अंतर दृष्टि है सो कहे है ॥ सोरठा. अंतर दृष्टि लखाव, अर स्वरूपको आचरण । .. ए परमातम भाव, शिव कारण येई सदा ॥ १०॥ . अवं बंध होनेका कारण बाह्य दृष्टि है सो कहे है ॥ सोरठा. . कर्म शुभाशुभ दोय, पुद्गलपिंड विभाव मल। इनसों मुक्ति न होय, नांही केवल पाइये ॥ ११ ॥ अवये वात ऊपर शिष्य पश्न करे अर गुरु उत्तर कहे है। सवैया ३१ ता. कोई शिष्य कहे स्वामी अशुभक्रिया अशुद्ध, शुभक्रिया शुद्ध तुम ऐसी क्यों न वरनी.।। गुरु कहे जवलों क्रियाके परिणाम रहे, तबलो उपल उपयोग जोग धरनी ॥ थिरता न आवे तौलों शुद्ध अनुभौ न होय, याते दोउ किया मोक्ष पथकी कतरनी ।। बंधकी कैरया दोउ दुहमें न भली कोड, बाधक विचारमें निषिद्ध कीनी करनी ॥ १२ ॥ . अब ज्ञान मात्र मोक्षमार्ग है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा. . . मुकतिके साधककों वाधक करम सव, आतमा अनादिको करम माहि लूक्यो है ॥ येतेपरि कहे जो कि पापबुरो पुन्यमलो, सोइ ‘मही मूड मोक्ष
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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