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________________ ( ३० ) लीजे एक पल्में || ताको अनुभव की परम पीयूष पांजे, बंधकों विलासडारि दीने पुद्गलमें ॥ २८॥ • आत्माका शुद्ध अनुभव है सो परम पदार्थ है ताकी प्रशंसा । सवैया ३१. द्रव्यार्थिक नय परयायार्थिक नय दोउ श्रुत ज्ञानरूप श्रुत ज्ञान तो परोख है ॥ क्रुशुद्ध परमातमाको अनुभौ प्रगट ताते, अनुभौ विराजमान अनुभ अदोख है || अनुभौ प्रमाण भगवान् पुरुष पुराण, ज्ञान और विज्ञानघन महा सुख पोख है ॥ परम पवित्र यो अनंत नाम अनुभौके, अनुभौ विना न कहूं और ठौर मोख है ॥ २९ ॥ अब अनुभव विनाः संसार में भ्रमे अर अनुभव होते मोक्ष पाये है सो कहे है । सवैया ३१ सा. जैसे एक जल नानारूप दरवानुयोग, भयो बहु भांति पहिचान्यो. न.. परत है ॥ फीरि काल पाई दरवानुयोगं दूर होत, अपने सहज नीचे मारग ढरत है ॥ तैसे यह चेतन पदारथ विभावतासों, गति जोनि भेष भव भावरि भरत है ॥ सम्यक् स्वभाव पाड़ अनुभौके पंथ धाइ, बंधकी जुगती भानि मुकती करत है ॥ ३० ॥ दोहा निशि दिन मिथ्याभाव बहु, धेरै मिथ्याती जीव ॥ जाते भावित कर्मको, कर्त्ता को सदीव ॥ ३१ ॥ अव मूढ मिथ्यात्वी है सो कर्मको कर्त्ता है और ज्ञानी कर्त्ता है सो कहे है ।। चौपाई ॥ -- करे करम सोई करतारा । जो जाने सो जानन हारा ॥ जो करता नहि नाने सोई । जाने सो करता नहि होई ॥ ३२ ॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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