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________________ (१२३) अिडोल है. रहत हैं ॥ चर्या दुख भरे तिण फाससों न थरहरे, मल दुरगंधकी गिलानी न गहत हैं । रोगनिको करे न इलाज ऐसो मुनिराज, वेदनीके उदै ये परिसह सहत हैं ॥ ८४ ॥ .. छंद-येते संकट मुनि सहे, ‘चारित्र मोह उदोत । लज्जा संकुच दुख धरे, नगन दिगंबर होत । नगन दिगंबर होत, श्रोत्र रति स्वाद न सेवे । त्रिय सनमुख हग रोक, मान अपमान न बेवे । थिर व्है निर्भय रहे, सहे कुवचन जग जेते .। भिक्षुक पद संग्रह, लहे मुनि संकट येते ॥ ८॥ अल्प ज्ञान लघुता लखे, मति उत्कर्ष विलोय । ज्ञानावरण उदोत मुनि, सहे परीसह दोय ॥ ८६ ॥ सहे अदर्शन दुर्दशा, दर्शन मोह उदोत । रोके उमंग अलाभकी, अंतरायके होत ॥ ८७॥ ३१ सा-एकादश वेदनीकी चारित मोहकी सात, ज्ञानावरणीकी दोय एक अंतरायकी ॥ दर्शन मोहकी एक द्वाविंशति बाधा सव, केई मनसाकि केई वाक्य केई कायकी ॥ काहूको अलप काहू बहुत उनीस ताई, एकहि समैमें . उदै आवे असहायकी ॥ चर्या थिति सज्या मांहि एक शीत उष्ण. माहि, एक दोय होहि तीन नांहि समुदायकी ।। ८८ ॥ नाना विधि संकट दशा, सहि साधे शिव पंथ । थविर कल्प जिनपल्प धर, दोऊ सम निग्रंथ ॥ ८९ ॥ जो मुनि संगतिमें रहे, थविर कल्प सो जान ॥ एकाकी ज्याकी दशा, सो जिनकल्प वखान ॥ ९० ॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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