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________________ ( ११३ ) - हिरदे भंडार में समानि वाणि आरखी ॥ कहत बनारसी अलंप भव श्रिती जाकी, सोई जिन प्रतिमा प्रमाणे जिन सारखी ॥ ३ ॥ यह विचारि संक्षेपसों, गुण स्थानक रस चोज । वर्णन करे बनारसी, कारण शिव पथ खोज ॥ ६ ॥ नियत एक व्यवहारसों, जीव चतुर्दश भेद | रंग योग वह विधि भयो, ज्यों पट सहज सुपेद ॥ ७ ॥ ३१ सा - प्रथम मिथ्यात दूजो सासादन तीजो मिश्र, चतुरथ अत्रत पंचमो व्रत रंच है | छठ्ठो परमत्त नाम, सातमो अपरमत नाम आठमो अपूरव करण सुख संच है ॥ नौमो अनिवृत्तिभाव दशम सुक्षम लोभ, एकादशमो सु उपशांत मोह वंच है ॥ द्वादशमो क्षीण मोह तेरहो संयोगी 5 'जिन चौदमो अयोगी जाकी थिती अंक पंच है ॥ ८ ॥ बरने सब गुणस्थानके, नाम चतुर्दश सार । : अब वरनों मिथ्यातके, भेद पंच परकार ॥ ९ ॥ ३१ सा -- प्रथम एकांत नाम मिथ्यात्व अभिग्रहीक, दूजो विपरीत 'अभिनिवेसिक गोत है ॥ तीजो विनै मिथ्यात्व अनाभिग्रह नाम जाको, चौथो संशै जहां चित्त भोर कोसो पोत है ॥ पांचमो अज्ञान अनाभोगिक गहल रूप, जाके उदै चेतन अचेतनसा होत है ॥ येई पांचौं मिथ्यात्व जीवको जगमें भ्रमावे, इनको विनाश समकीतको उदोत है ॥ १० ॥ * जो एकांत नय पक्ष गहि, छके कहावे दक्ष । सो इकंत वादी पुरुष, मृपावंत परतक्ष ॥ ११ ॥. :
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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