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________________ (१०२) अलख ज्योतिमें ज्योति समाइके ॥ सदबुद्धी कहे जीव अनादिको देहधारि, जब ज्ञानी होयगो कवही काल पायके || तवहीसों पर तजि अपनो स्वरूप भनि, पावेगो परम पद करम नसायके ॥ २३ ॥ ____ कोउ पक्षपाती. जीव कहे ज्ञेयके आकार, परिणयो ज्ञान ताते चेतना असत है ॥ ज्ञेयके नसत चेतनाको नाश ता कारण, आतमा अचेतन त्रिकाल मेरे मत है ॥ पंडित कहत ज्ञान सहज . अखंडित है, ज्ञेयको आकार धरे ज्ञेयसों विरत है ।। चेतनाके नाश होत सत्ताको विनाश होय, याते ज्ञान चेतना प्रमाण जीव सत है ॥ २४ ॥ कोउ महा मूरख कहत एक पिंड मांहि, नहालों अचित चित्त अंग लह लहे है ॥ जोगरूप भोगरूप नानाकार ज्ञेयरूप, जेते भेद करमके तेते जीव कहे है । मतिमान कहे एक पिंड मांहि एक जीव, ताहीके अनंत भाव अंश फैलि रहे है ॥ पुद्गलसों भिन्न कर्म जोगसों अखिन्न सदा, उपने विनसे थिरता स्वभाव गहे है ।। २५ ॥ कोउ एक क्षणवादी कहे एक पिंड मांहि, एक जीव उपजत एक विनसत हैं ॥ जाही समै अंतर नवीन उतपति होय, ताही समै प्रथम पुरातन वसत है। सरवांगवादी कहे जैसे जल वस्तु एक, सोही जल विविध तरंगण लसत है ।। तैसे एक आतम दरव गुण पर्यायसे; अनेक भयो पै एक रूप दरसत है ॥ २६ ॥ . कोउ बालबुद्धिं कहे ज्ञायक शकति जोलों, तोलों ज्ञान अशुद्ध जगत मध्य जानिये ॥ ज्ञायक शकति काल पाय. मिटिजाय जब, तब अविरोध बोध विमल. वखानिये ॥ परम प्रवीण कहे ऐसी. तो न बने. वात, जैसे
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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