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________________ तिक्षनी अपर दूजी, नैकों ने दिखाइ बाद विवादमें रहिये । थिरता न होइ विकलपकी तरंगनिमें, चंचलता बढ़े अनुभौं ।' दशा न लहिये । तालें जीव अचल अबाधित अखंड एक, ऐसो पद साधिके समाधि सुख गहिये ॥ ५८ ॥.. सवैया इकतीसा-जैसे एक पाको आंवफल ताके चारि अंस, रसजाली गुठली छीलक. जव मानिये । यों तो न बनें पें ऐसे बने जैसें दहेफल, रूपरस गंध फास.अखंड प्रवानिये ।। . . तैसें एक जीवकों दरव क्षेत्र कालभाव, अंस भद करिः भिन्न . भिन्न न वखानिये। दवं रूप क्षेत्ररूप कालरूप भावरूप,चारोंरूप अलख अखंड लत्ता मानिये ॥ ५९ ॥ ...... __ सवैया इकतीसा-कोउ ज्ञानवान कहे ज्ञानतो हमारोरूप, ज्ञेयषटदर्ब सो हमारो रूप नाही है। एकनै प्रबान ऐसें दूजी अब कहों जैसे,सरस्वती अक्षर अरथ एक ठांही है ॥ तैसे ज्ञाता मेरो नाम ज्ञान चेतना विराम, ज्ञेयरूप सकति अ नंत मुझ पाही है। ता कारण वचनके भेद भेद कहों कोउ, ज्ञाता ज्ञान ज्ञेयको बिलास सत्ता माहीं है ॥ ६०. ॥ :.. . . चौपाई : स्वपर प्रकाशक सकति हमारी। तातें बचन भेदभ्रमभारी॥ ज्ञेयदसा द्विविधा परगासी।निजरूपा पररूपा भासी॥ ६१॥ . 'दोहा-निजरूपा आतम सकति, पररूपा परवस्त।. जिनि लखि लीनो पेच यह,तिनिलिखलियो समस्तः॥१२॥ सवैया इकतीसा-करम अवस्थामें अशुद्धसो विलोकियत,... करम कलंकसों रहित शुद्ध अंगहै । उभे नै प्रवान समका. .. ल सुद्धासुद्धरूप, ऐसो परजाइ धारी जीव नाना रंग. हैं: ॥
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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