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________________ . (८०) वसे, करनी अज्ञानभाव राकसकी पुरी है। करनी करम काया पुग्गल की प्रती छाया करनी प्रगट माया मिसरीकी छुरी है ॥ करनी के जालमें उरझि रहो चिदानंद करनीकी उट ज्ञान भान दुति दुरीहै । आचारज कहै करनीसो विव.. हारी जीव करनी सदीव निहचै सरूप बुरी है ।। ४५॥ • . चौपाई। मृषा मोहकी परिनति फैली। तातें करम चेतना मैली ॥ ज्ञान होत हम समुझी एती । जीवसदीवभिन्नपरसेती॥४६॥ दोहा-जीवअनादिसरूपमम, करम रहित निरुपाधि । अविनाशीमशरनसदा, सुखमयसिद्धसमाधि॥४७॥ चौपाई। मैं त्रिकाल करणीसों न्यारा।चिदविलासपदजगतउज्यारा! रागविरोधमोह ममनांही । मेरो अवलंवन मुझमाही ॥४ सवैया तेईसा-सम्यकवन्त कहे अपने गुन, में नित राग विरोध सोंरीतो। में करतूति करों निरवंछक, मोह चिरंस लागत तीतो ॥ सुद्ध सुचेतनको अनुभौ करि, में जग मोह महाभड़ जीतो । मोप समीप भयो अव मोकहुं, कालअनंत इहीविधि बीतो॥ ४९॥ दोहा-कहे विचक्षनमेंसदा, रह्यो ज्ञानरस राचि। सुद्धातम अनुभूतिसों,खलितनहोइ कदाचि॥ ५० ॥ पूर्व करमविष तरुभये, उदे भाग फल फूल । में इन्हको नहिं भोगता, सहजहाडं निरमूल ॥ ५१ ।। जो पूरव कृत कर्म फल, रुचिसोझुंजे नाहि । मगन रहे आठो पहुर, शुद्धातम पदमाहि. ॥ ५२ ।।
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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