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________________ क्षसों अजाची लक्षपती हैं ॥ दास भगवन्तके उदास रहै जगतसों, सुखिया सदीन ऐसे जीव समकिती हैं ॥७॥ __ सबैया इकतीसा-जाके घट प्रगट विवेक मनधरकोसो हिरदे हरख महा मोहकों हरतु हैं। सांचो सुख मानै निज अडोल जानें, अग्रही में आफ्नो सुभावले धरतुहैं। जैसे जल कर्दम कतक फल भिन्न करें, तैसे जीव अजीव विलक्षन करतहैं । आतम सगति साधे ज्ञानको उदो आराधे, सोई समकिती भवसागर तरतहैं ॥८॥ __सवैया इकतीसा--धरम न जालत बखानत भरमरूप, ठौर २ ठानत लराई पक्षपातकी । मूल्यो अभिमानमें न पाउं धरे धरनी में, हिरदे में करनी विचारै उतपातकी । फिरेडाबाडोलसों करमके कलोलनमें, वैरही अवस्थासों वधूलाकेसे पातकी।जाकी छाती ताती कारी कुटिल कुबाती भारी, ऐसो ब्रह्मघाती है मिथ्याती महापातकी ॥ ९॥ "दोहा--वंदो शिव अवगाहना, अरु वंदों शिवपंथ । जसु प्रसाद भाषा करो,नाटक नामकग्रंथ ॥१०॥ :: सवैया तेईसा-चेतनरूप अरूप असूरति सिद्ध समान सदा पद मेरो । मोह महातम आतम अंग, कियो परसंग महातमधेरो॥ज्ञानकला उपजी अब मोहि कहाँ गुन नाटक आगमः केरो । जासु प्रसाद सधै शिवमारग वेग मिटे भव वास वसेरो ॥११॥ । सवैया इकतीसा--जैसे कोउ मूरख लहासमुद्र तरिव को भुजानिसों उद्यत भयो है तजि नाबरो। जैसे गिरिउपरि विरषफल तोरिवेकों बावन पुरुषकोउ उमंग उतावरो। जैसे
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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