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________________ (११२ ) . एकाकीनाकी दशा, सो जिनकल्प वखानि ॥ ६ ॥ .. .: चौपाई। थविरकलपमुनिकछुकसरागी । जिनकलपी महांत विरागी॥ इति प्रमत्त गुनथानकं धरनी। पूरनभईजथारथवरनी॥ ६३॥ अब बरनो सत्तम विसरामा । अप्रमत्त गुनथानक नामा ॥.. जहां प्रमादक्रिया विधिनासे । धर्मध्यान थिरतापरगाले६४॥ दोहा-प्रथम करनचारित्रको, जासु अंत पद होई। - जहां अहार बिहारनहि, अप्रमत्त हे सोइ ॥६५ ॥ ......... . चौपाई। . अव वरनो अष्टम गुन थाना । नाम अपूरब करन वखाना ॥ . कछुकमोहउपसमकरिराखे । अथवाकिंचितक्षयकरिनाखोक्षा जो परिनाम भये नहिकबहीं । तिन्हको उदो देखिएजबहीं ॥ . तब अष्टम गुनथानक होई । चारितकरन दूसरोसोई॥६॥ अब अनवर्तिकरन सुनु भाई। जहां भाव थिरताअधिकाई॥ पूरवभाव चलाचल जेते। सहजअडोलभयेसवतेते॥६॥ . जहांनभाव उलटिअधश्रावे । सो नवमो गुनथान कहावै ॥ चारित मोहजहां बहुछीजा । सोहेचरनकरनपदतीजा ॥६९॥ कहों दशमगुनथानदुसाखा । जहांसूक्ष्मशिवकीअभिलाषा ॥ सूक्षमलोभदशाजहांलहिये। सूक्षम संपरायलोकहिये ॥७॥ अब उपसंत मोहगुन थाना । कहों तातु प्रभुता परवानाः ।। जहांमोहउपसमै न भासे । जथाख्यातचारितपरगासा७॥ दोहा-जाहि फरसके जीव गिरि, परै करै गुन रद्द। . ... सो एकादसमी दसा, उपसमकी सरहद्द ।। ७२॥
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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