SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१००) मिथ्यात तिमर अपहार वर्द्धमान धारा, जैसी उभै जाम लों किरन दीपे रविकी । ऐसीहै अमृत चंदकला त्रिधारूपधरे, अनुसौ दशा गरंथ टीका बुद्धि कविकी॥६७॥ दोहा-नाम साधि साधक कह्यो, द्वार द्वादसमठीक। .. समयसार नाटक सकल पूरन भयो सटीक.॥६॥ इतिश्रीवाटकसमयसारविर्षेसाध्यसाधकनामावारमांद्वारसंपूर्णम् । दोहा-अव कविजन पूरनदशा, कहै आपसों आप। सहज हरष मन में धरै, करैं न पश्चाताप ॥.६९॥ सवैया इकतीसा जो मैं आप छोड़ि दीनो पररूप गहि लीनो, कीलोन क्लेरो तहां जहां सेरो थल है। भोगनि को भोगी राहि करमको कर्ता भयो, हिरदे हमारे राग दोष मोह मल है। ऐसी विपरीति चाल भई जो अतीति काल, सोतो मेरी क्रिया की ममत्वताको फल है । ज्ञान दृष्टि भासी भयो क्रिया सों उदासी वह, मिथ्या मोह निद्रा में सुपन को सो छल है ॥ ७॥ दोहा-अमृतचन्द मुनिराज कृत, पूरन भयो गरंथ।...: समयसार नाटक प्रकट पंचमगतिको पंथ ॥७१॥ . इतिश्रीसमयसारनाटकग्रंथअमृतचंदआचार्यकृत्तसंपूर्णम् । .. दोहा-जाकी भगति प्रभावलो; कीनोग्रंथ निवाहि। :: जिनप्रतिमाजिनसारखी,नभेबनारसिताहि ॥७२॥. ::, सवैया इकतीसा-जाके सुख दरस सों भगत के नैननि.
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy