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________________ अंग्रेजी-अध्ययन पाठको के मनोरजनार्थ रैवरैण्ड जौन्स की एक हिन्दी-चिट्ठी की ज्योकी त्यो नकल नीचे दी जाती है-- Regent's Park Hostel Dacca. आगस्ट ३ । १६१० श्रीयुत प्रिय बन्धु सत्यनारायण, __ अशोर्वाद अनेक दिन से मै आपकी ओर से एक पत्र की बाट देखता रहता हूँ क्योकि अब तक आप बी० ए० पास हो गये कि ना, यह बात मै ठीक जानता नही। क्यो भाई, हम दो जन भ्राता लोग है न, सो मुझको भूलियो नाकिन्तु पत्र लिखने की पारी मेरे है----आपका पत्रोतर पाया और इससे मै अति आनन्दित हुआ। आजकल न हो कि हिन्दी पढना लिखना भूल जाऊँ, मै प्रत्येक दिन कुछ न कुछ पढा करता हूँ। उचित है जो कि आप चेले की यह समाचार सुनके सुख रहे। बहुत दिन से मैं जान लिया हूँ कि बङ्गला और हिन्दी मे बहुत मेल हे-किन्तु बङ्गला का उच्चारण मे इतना अन्तर है कि कान फटने को है और आगे यहाँ पर कथा-प्रसंग मे अनेक शब्द व्यवहार करते है जो हिन्दी मे केवल पुस्तक मे उपस्थित है । वास्तविक दोनों भाषा संस्कृत से निकली है-परन्तु भाई मेरी इच्छा हिन्दी पर सर्वदा चलती रहती है और क्या यह तो है न, मेरे जन्म-स्थान की बोली। क्या हम जन्म देश भूल सकते है, कभी नही। दयामय परमात्मा आप को सुख दे यह मेरा प्रार्थना । आप का चेला एल० बी० जोन्स अपने "चेले" से यह आशीर्वाद पाकर सत्यनारायण को अवश्य ही हँसी आ गई होगी।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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