SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २ ] करने का भरसक प्रयत्न किया । हम अपने असली नाम तक को भी भूल चुके थे, तथा हिन्दू आदि अवैदिक तथा गर्हित नामों से अपने को पुकारने लग पड़े थे। भगवान दयानन्द ने हमें बताया कि तुम "काफ़िर तथा गुलाम हिन्दू" नहीं हो, प्रत्युत् प्रभु के अमृत पुत्र "प्रार्य" हो। तुम्हारा देश हिन्दुस्तान नहीं, अपितु “आर्यावन' है। तुम्हारी जाति हिन्दू-जाति नहीं, अपितु आर्यजाति है। तुम्हारा धर्म हिन्दू धर्म नहीं, अपितु पवित्र आयधर्म है। मैं भगवान दयानन्द के उपकारों का कहां तक वर्णन करूं । कौन सा ऐसा उपकार है, जो ऋपि दयानन्द ने हमारे ऊपर न किया हो ! आज ऋषि के सिद्धान्तों की दिग्विजय हो रही है। प्रत्येक राष्ट्र प्रत्येक जाति तथा प्रत्येक धर्म ऋपि के चरणचिह्नों पर चल कर ही अपने को उन्नत तथा उज्ज्वल करना चाहता है। किन्तु खेद है कि हम ऋषि के अनुयायी ऋषि के प्रदर्शित मार्ग मे विचलित होते जा रहे हैं। हमने ऋषि के दर्शाये पवित्र वैदिक सिद्धान्तों पर आचरण करना छोड़ दिया है । और सब से बढ़कर दुःख तथा शोक की बात तो यह है कि हम जहां आर्यत्व से दूर होते जा रहे हैं, वहां ऋषि के बतलाए पवित्र " अार्य " नाम को भी तिलाञ्जलि देत जा रहे हैं और अपने को हिन्दू आदि अवैदिक नामों से पुकारने लग पड़े हैं। ऋषि ने हमारे अन्दर से हिन्दूपन को दूर कर हमें "आर्यत्व" प्रदान किया था। ऋपि ने हमें बताया था कि तुम मुर्दादिल हिन्दू नहीं हो, अपितु आनन्द और उत्साह के केन्द्र शूरवीर "आर्य" हो। इसी लिए ऋषि ने हमारे समाज का नाम भी "आर्यसमाज" अर्थात् आर्यों का समाज रखा था न कि.
SR No.010582
Book TitleHum Aarya Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrasen Acharya
PublisherJalimsinh Kothari
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy