SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ९ ] हिन्दू गुलाम काफिर जो हो चुके सभी थे । आर्य बना फिर उनको सरदार कर गया है। इस प्रकार के हमारे भजन केवल स्वप्न-संसार का ही विषय बन जायेंगे । इस लिये प्राय पुरुषो! चेतो ! और अपने कर्तव्य को पहिचाना ! जहां आप अपने अंदर से, अपने परिवार के अन्दर से, हिन्दुपन को सर्वथा निकाल दो, वहां कायरता, पराधीनता, तथा उत्साह-हीनता के द्योतक इस अवैदिक 'हिन्दु' नाम को भी सर्वथा तिलाअलि देकर पुण्य के भागी बनो ! तथा अपने जीवनों को उच्च तथा पवित्र बनाते हुए नवजीवन, पावित्र्य, उत्साह तथा वीरता के द्योतक “आर्य” नाम से ही अपने को अलंकृत करो। जब हमारे अन्दर आयत्व था, जब हमारा बच्चा बच्चा अपने को आर्य कहने में ही गर्व समझता था। उस समय हम सुशील थे, धीर थे और वीर थे। हमारे धर्म पर जरा भी संकट आ पड़ने पर हम वीर अर्जुन की भाँति छाती निकाल कर मैदाने-जंग में कूद पड़ते थे। तथा अपने पवित्र धर्म के ऊपर भाए हुए संकट के काले बादलों को छिन्न-भिन्न करके ही दम लेते थे। उस समय हम थोड़े थे पर भारी से भारी संकट तथा श्रारत्ति के आ पड़ने पर भी किसी से सहायता की याचना नहीं करते थे। उस समय संसार की भारी से भारी शक्ति भी हम को देखकर कॉप जाया करती थी। किन्तु जब से हमारे अन्दर हिन्दूपन घुसने लगा, और अपने को हिन्दुओं का एक फिरका मान हिन्दू ही कहने लग पड़े, तब से हमारे अन्दर कायरता, भीरता तथा उत्साह-हीनता का वास होने लगा।
SR No.010582
Book TitleHum Aarya Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrasen Acharya
PublisherJalimsinh Kothari
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy