SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५ ] • धर्म प्रचारक धर्म नहीं है । 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम' 'यथेमां वाचम्' वेद के इन प्रमाणों को उद्धृत किया है। जिसका स्पष्ट यह तात्पर्य है कि उक्त महानुभाव वैदिक धर्म को ही हिन्दू-धर्मं समझते हैं । केवल समझते नहीं हीं अपितु उनका यह निश्चिन् मत है कि वैदिक धर्म ही हिन्दू-धर्म है - जैसा कि वे वेद के उपर्युक्त प्रमाणों को उद्धृत कर नीचे लिखते हैं 1 "इन प्रमाणों को मौजूदगी में यह कहना कि हिन्दू धर्म र तबलीग़ी है, कितना बेमानी है।" कितने खेद की बात है कि हम प्रमाण तो दें सारे ससार को आर्य बनाने का और उससे सिद्ध करें हिन्दू-धर्म को 'रौर तबलीग़ी धर्म' और उस लेख को लिखने का उद्देश्य यह हो कि ग़ैर हिन्दुओं को हिन्दूधर्म में शामिल करना और वह भी दयानन्द के नाम पर स्थापित किये गये मिशन द्वारा जिनके जीवन का उद्देश्य ही सारे संसार को आयें बनाना था । क्या हम यह दयानन्द के साथ अन्याय तथा विश्वासघात नहीं कर रहे ? मैं तो समझता हूँ कि यह सब शिथिलताएँ अपने को हिन्दू कहने के कारण ही हमारे अन्दर पैदा हुई हैं। यहां तक कि हम अपने को भी हिन्दुओं का एक अवयव अथवा फ़िरका ही समझने लगप ड़े हैं। इसका यदि प्रमाण लेना हो तो २ नम्बर सं० १९३४ 'आर्यमित्र' के सम्पादकीय लेख में देखिये । 'आर्य-मित्र' के सम्पादक महोदय अपने मुख्य सम्पादकीय लेख में लिखते हैं- 'आर्यसमाज ने कभी भी अपने को हिन्दुओं से अलग नहीं कहा ।' कितने खेद की बात है कि जिस समाज का उद्देश्य हिन्दू आदि सब सम्प्रदायों को श्रार्य बनाना था, अब वही समाज अपने को भी
SR No.010582
Book TitleHum Aarya Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrasen Acharya
PublisherJalimsinh Kothari
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy