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________________ १६३. जिसके लिए ये वायु-कर्म की क्रियाएँ परिजात हैं, वही परिज्ञात-कर्मी [ हिंसा-त्यागी ] मुनि है। -ऐसा मैं कहता हूँ। १६४. यहाँ समझे कि वे अावद्ध हैं, जो आचरण का पालन नहीं करते, हिंसा करते हुए भी विनय/अहिंसा का उपदेश देते हैं । १६५. वे स्वच्छन्दी और विपय-गृद्ध हैं । १६६. हिंसा में प्रासक्त पुरुप संग/वन्धन वढ़ाते हैं । १६७. अहिंसक संवुद्ध-पुरुप के लिए प्रज्ञा से पापकर्म अकरणीय है । १६८. उसका अन्वेपण न करे। १६६. उस छह जीवनिकायिक हिंसा को जानकर मेधावी न तो स्वयं छह जीव निकाय-शस्त्र का उपयोग करता है, न ही छह जीवनिकाय-शस्त्र का उपयोग करवाता है, न ही छह जीवनिकाय-शस्त्र के उपयोग करने वाले का समर्थन करता है। १७०. जिसके लिए ये छह जीवनिकाय-कर्म की क्रियाएँ परिज्ञात है, वही परिज्ञातकर्मी [हिंसा-त्यागी] मुनि है। ~ऐसा मैं कहता हूँ। शस्त्र-परिज्ञो
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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