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________________ १२७ और इस जीवन के लिए प्रशंसा, सम्मान एवं पूजा के लिए जन्म, मरण एवं मुक्ति के लिए दुःखों से छूटने के लिए [ प्राणी कर्म-वन्धन की प्रवृत्ति करता है । ] १२- वह स्वयं ही त्रम-शस्त्र का उपयोग करता है, दूसरों से त्रस - शस्त्र का उपयोग करवाता है और त्रस - शस्त्र के उपयोग करने वालों का समर्थन करता है | १२. वह हिंसा अहित के लिए है और वही अवधि के लिए है 1 १३०. वह (साधु) उस हिंसा को जानता हुआ ग्राह्य मार्ग पर उपस्थित होता है । १३१. भगवान् या अनगार से सुनकर कुछ लोगों को यह ज्ञात हो जाता हैयही (हिंसा) ग्रन्थि है, यही मोह है, यही मृत्यु हैं, यही नरक है । १३२. यह आसक्ति हो लोक है । १३३. जो नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा त्रस-कर्म को क्रिया में संलग्न होकर कायिक जीवों की अनेक प्रकार से हिंसा करते हैं । १३४. वही मैं कहता हूँ कुछ जन्म से ग्रन्धे होते हैं, तो कुछ छेदन से ग्रन्धे होते हैं । कुछ जन्म से पंगु होते हैं, तो कुछ छेदन से पंगु होते हैं, कुछ जन्म से घुटने तक, तो कुछ छेदन से घुटने तक, कुछ जन्म से जंघा तक तो कुछ छेदन से जंघा तक, कुछ जन्म से जानु तक, तो कुछ छेदन से जानु तक, कुछ जन्म से उरु तक, तो कुछ छेदन से उरु तक, शस्त्र-परिज्ञा tal
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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