SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४. से सयमेव उदय-सत्यं समारंभ, अणेहि वा उदय-सत्यं समारंभावेइ, अण्णे बा उदय-सत्यं समारंभंते समणुजाण । ४५. तं से अहियाए, तं से अबोहोए। ४६. ते तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए । सोच्दा भगवनो अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसि गायं भवइएस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु गरए। ४८. इच्चत्यं गड्ढिए लोए। ४६. जमिणं विरूवस्वेहि सत्येहि उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्यं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिसइ । ५०. से वेमि अप्पेगे अंधमन्मे, अप्पेगे अंधमच्छे, अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छ, अप्पेगे गुप्फमन्मे, अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमन्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमन्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमन्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छ, अप्पेगे कडिमन्मे, अप्पेगे कडिमच्छे, अप्पेगे णाभिमन्भे, अप्पेगे णाभिमच्छे, अप्पेने उयरमन्ने, अप्पेगे उयरमच्छे, अप्पेगे पासमन्भे, अप्पेगे पासमच्छे, अप्पेगे पिट्ठमन्मे, अप्पेगे पिटुमच्छे, अप्पेगे उरमन्भे, अप्पेगे उरमच्छे, अप्पेगे हिययमन्भे, अप्पेगे हिययमच्छे, अायार-सुतं
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy