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________________ १८. श्राघाकर्मी ( उद्दिष्ट) आहार का भगवान् ने सेवन नहीं किया । वे सभी प्रकार से कर्म-द्रष्टा बने रहे । पाप के जो भी कारण थे, उनको न करते हुए भगवान् ने प्राक / निर्जीव आहार किया । १६. वे परवस्त्र का सेवन नहीं करते थे. परपात्र में भोजन भी नहीं करते थे, अपमान का वर्जन कर अशरण - भाव से संखण्डि / भोजनशाला में जाते थे । २०. भगवान् अशन और पान की मात्रा के ज्ञाता थे, रसों में अनुगृद्ध नहीं थे, प्रतिज्ञ, का भी प्रमार्जन नहीं करते थे, गात को खुजलाते भी नहीं थे । २१. वे न तो तिरछे देखते थे और न पीछे देखते थे। वे बोलते नहीं थे, अप्रतिभाषी थे, पंथप्रेक्षी और यतनापूर्वक चलते थे । २२. वे अनगार वस्त्र का विसर्जन कर चुके थे । शिशिर ऋतु में चलते समय बाहुनों को फैलाकर चलते थे । उन्हें कन्धों में समेट कर न चलते । २३. मतिमान माहन भगवान् महावीर ने इस अनुक्रान्त / प्रतिपादित विधि का अप्रतिज्ञ होकर अनेक बार आचरण किया । - ऐसा मैं कहता हूँ । द्वितीय उद्देशक २४. [ जम्बू ने सुधर्मा से निवेदन किया- ] साधु-चर्या में ग्रासन और शय्या / निवास-स्थान: जो कुछ भी श्रभिहित है, उन शयनासनों को कहे, जिनका महावीर ने सेवन किया । २५. [ महावीर ने ] श्रावेशन / शून्यगृहों, सभाओं, प्याऊ और कभी पण्यशालाओं / दुकानों में वास किया श्रथवा कभी पलितस्थानों एवं पलाल पुन्जों में वास किया । उपधान-श्रुत २१६
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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