SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. [ भगवान् ने संकल्प किया ] उस हेमन्त में इस वस्त्र से शरीर को श्राच्छादित नहीं करूँगा । वे पारगामी जीवन पर्यन्त अनुधार्मिक रहे, यही उनकी विशेषता है । ३. ४. ५. प्रथम उद्देशक जैसा सुना है, वैसा कहूँगा । वे श्रमरण भगवान् महावीर अभिनिष्क्रमण एवं ज्ञान प्राप्त कर हेमन्त में शीघ्र विहार कर गए । ७. चार माह से अधिक समय तक बहुत से प्रारणी ग्राकर एवं चढ़कर शरीर पर चलते और उस पर ग्रारूढ़ होकर काट लेते । भगवान् ने संवत्सर (एक वर्ष) से अधिक माह तक उस वस्त्र को नहीं छोड़ा। इसके बाद उस वस्त्र को भगवान् ने : नहीं छोड़ा | इसके वाद उस वस्त्र को छोड़कर ग्रनगार महावीर अचेलक एवं त्यागी हो गए । अथवा पुरुष प्रमाण/प्रहर - प्रहर तक तिर्यग्भित्ति को चक्षु से देखकर अन्ततः ध्यान-मग्न हो गए । चक्षु से भयभीत वालक उनके लिए 'हंत ! हंत ! ' चिल्लाने लगे । ६. जनसंकुल स्थानों पर महावीर स्त्रियों को जानकर भी सागारिका / ग्राम्यधर्म का सेवन नहीं करते थे । वे स्वयं में प्रवेश कर ध्यान करते थे । जो कोई भी श्रागार उनके सम्पर्क में प्राते, वे ऋजु परिणामी भगवान् उन्हें छोड़कर ध्यान करते थे । पूछे जाने पर अभिभाषण नहीं करते, अपने पथ पर चलते और उसका प्रतिक्रमण नहीं करते । उपधानन्त २१५
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy