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________________ पूर्व स्वर प्रस्तृत अध्याय 'उपधान ध्रुत है। यह व्यक्तित्व वेद का ही उपनाम है। सामीप्यपूर्वक सुनने के कारण भी इस अध्याय का यह नामकरण हुआ है। प्रस्तुत अध्याय म्हावीर के महाजीवन का खुल्ला दस्तावेज है। प्रस्तुत अध्याय का नायक संकल्प-धनी/लौह-पुरुष की संघर्पजयी जीवन-यावा का अनूठा उदाहरण है । महावीर प्रात्म-विजय वनाम लोक-विजय का पर्याय है। वे स्वयं ही प्रमाण हैं अपने परमात्म-स्वरूप के। उनकी भगवत्ता जन्मजात नहीं, अपितु कर्म-जन्य है। उन्होंने खुद से लड़कर ही खुद की भगवता/यशस्विता के मापदण्ड प्रस्तुत किये । संघर्ष के सामने घुटने टेकना उनके प्रात्मयोग में कहाँ था ! उनका कुन्दन तो संघर्ष की ग्रांच में ही निखरा था । कुछ लोग जन्म से महान होते हैं तो कुछ महानता प्राप्त कर लेते हैं। महावीर के मामले में ये दोनों ही तथ्य इस कदर गुंथे हुए हैं कि उनका व्यक्तित्व संघर्षों का संगम वनकर उभरा है। उनके जीवन में कदम-कदम पर परीक्षायों। कसौटियों की घड़ियाँ आई, किन्तु वे हर वार सौ टंच खरे उतरे और सफलता उनके सामने सदा नतमस्तक हुई । महावीर राजकुमार थे। घर-गृहस्थी के बीच रहते भी उनके मन पर लेप कहाँ था संसार का ! कमल की पंखुड़ियों की तरह ऊपर था उनका सिंहासन जीवन-शासन, दुनियादारी के उथल-पुथल मचाते जल से। प्रकृति को कलरवता ने महावीर को अपने आँचल में आने के लिए निमंत्रित किया। और उनके वीर-चरा वर्धमान हो गये वीतराग-पगडण्डी पर। उनका महाभिनिष्क्रमण महाति कारण तो सत्य प्राप्ति का जागरूक अभियान था। उनका रोम-रोम प्रयत्नशील बना जीवन के गुह्रतम सत्यों का आविष्कार करने में ।
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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