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________________ ३०. समनुज्ञ-पुरुप समनुज्ञ-पुरुप को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, प्रतिग्रह, कम्बल या पादोंदन प्रदान करे, निमन्त्रित करे, विशेष आदरपूर्वक वैयावृत्य करे। -ऐसा मैं कहता हूँ। ३१. कुछ पुरुप मध्यम वय में उपस्थित होकर भी सम्वुध्यमान होते हैं । ३२. मेघावी-पुरुप पण्डितों के निःश्रित वचनों को सुनकर [ प्रवजित होते हैं । ] ३३. आर्य-पुरुपों द्वारा प्रवेदित है कि समता में धर्म है । ३४. वे अनाकांक्षी, अनतिपाती, अपरिग्रही पुरुष समस्त लोक में परिग्रही नहीं हैं। ३५. प्राणियों के दण्ड/हिंसा को छोड़कर पाप-कर्म न करने वाला यह मुनि महान् अग्रन्थ कहलाता है । ३६. उत्पाद और च्यवन को जानकर द्युतिमान-पुरुप के लिए खेदज्ञता और ओज ३७. शरीर आहार से उपचित होता है और परिपह से प्रभंगुर । ३८. देखो ! कुछ लोग सर्वेन्द्रियों से परिग्लायमान होते हैं । ३६. अोज दया देता है। ४०. जो सन्निधान-शस्त्र का खेदज्ञ/ज्ञाता है, वह भिक्षु कालज्ञ, बलज्ञ, मात्रज, क्षण, विनयज्ञ एवं समयज्ञ है। ४१. परिग्रह के प्रति ममत्व न करने वाला समय का अनुष्ठाता एवं अप्रतिज्ञ है । ४२. दोनों-राग और द्वेप को छेदकर विचरण करे । विमोक्ष १८७
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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