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________________ ७. जो इस प्रकार से विप्रतिपन्न / विवाद करते हैं, वे अपने धर्म का निरूपण करते हैं । ८. इसे अकारक समझें । ६. उनका धर्म न सुग्राख्यात होता है और न सुनिरूपित । १०. जैसा कि ज्ञाता द्रष्टा आशुप्रज भगवान् महावीर के द्वारा प्रतिपादित है । ११. वचन के विषय का गोपन करे । १२. लोक सर्वत्र पाप सम्मत है । १३. उसका प्रतिक्रमरण करे । १४. यह महान् विवेक व्याख्यात है 1 १५. विवेक गाँव में होता है या अरण्य में? वह न गाँव में होता है, न अरण्य में । मतिमान् महावीर द्वारा धर्म को समझो ! १७. तीन साधन कहे गये हैं, जिनमें ये श्रार्य पुरुष सम्बुद्ध होते हुए समुपस्थित होते हैं । १६. १८. जो पाप कर्मो से निवृत्त हैं, वे श्रनिदान कहलाते हैं । - ऐसा मैं कहता हूँ । १९. ऊर्ध्वं श्रघो और तिर्यक् दिशाओं विदिशाओं में सब प्रकार से प्रत्येक जीव के प्रति कर्म समारम्भ किया जाता है । घुत 959
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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