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________________ पूर्व स्वर प्रस्तुत अध्याय 'विमोक्ष' है । विमोक्ष साधना का समग्र निचोड़ है। इसका लक्ष्य साधना का प्रस्थान-केन्द्र है और इसकी प्राप्ति उसका विथाम-केन्द्र । विमोक्ष मृत्यु नहीं; मृत्यु-विजय का महोत्सव है। प्रात्मा की नग्नता निर्वस्त्रता, कर्ममुक्तता का नाम ही विमोक्ष है । विमोक्ष की साधना अन्तरात्मा में विशुद्धता/स्वतन्त्रता का प्राध्यात्मिक अनुष्ठान है। विमोक्ष संसार से छुटकारा है। संसार की गाड़ी राग और द्वेप के दो पहियों के सहारे चलती है । इस गाड़ी से नीचे उतरने का नाम ही विमोक्ष है। विमोक्ष गन्तव्य है । वह वहीं, तभी है, जहाँ जव व्यक्ति संमार की गाड़ी से स्वयं को अलग करता है। विमोक्ष निष्प्रारणता नहीं, मात्र संसार का निरोध है । संसार में गति तो है, किन्तु प्रगति नहीं । युग युगान्तर के प्रतीत हो जाने पर भी उसकी यात्रा कोल्हु के वैल को ज्यों बनी रहती है । भिक्षु/साधक वह है, जिसका संसार की यात्रा से मन फट चुका है, विमोक्ष में ही जिसका चित्त टिक चुका है। संन्यास संसार से अभिनिष्क्रमरण है और विमोक्ष के राजमार्ग पर आगमन है। संसार साधक का प्रतीत है और विमोक्ष भविष्य । उसके वर्धमान होते कदम उसका वर्तमान है। वर्तमान की नींव पर ही भविष्य का महल टिकाऊ होता है। यदि नींव में ही गिरावट की सम्भावनाएं होंगी, तो महल अपना अस्तित्व कैसे रख पायेगा ? विमोक्ष साधनात्मक जीवन-महल का स्वर्णिम कंगूरा/ शिखर है । अतः वर्तमान का सम्यक् अनुद्रप्टा एवं विशुद्ध उपभोक्ता ही भविष्य की उज्ज्वलताओं को प्रात्मसात् कर सकता है। प्रगति को ध्यान में रखकर वर्तमान में की जाने वाली गति उजले भविष्य की प्रभावापन्न पहचान है।
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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