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________________ 454545454545454545454545454545451 बाबा श्रद्धा-सुमन ___ मुझे जहाँ तक स्मरण है, कि आचार्य शान्तिसागर जी महाराज छाणी LE का एक चातुर्मास बुन्देलखण्ड के नगर ललितपुर में हुआ था और एक कुछ T- दिनों के बाद बुन्देलखण्ड के ही नगर खुरई में हुआ था। उन अवसरों पर मुझे महाराज के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, वहाँ पर मैंने उनके जो प्रवचन सुने थे, उनमें वाणी का ओज था, विषय की गंभीरता थी. इससे उनके प्रति मेरी अपार श्रद्धा जागृत हुई थी। उस अवसर पर जो जो तात्त्विक चर्चा हुई थी, उसमें उनके तात्त्विक ज्ञान की गहरी झलक दिखाई दी थी। मैं उनके प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट करता हूँ। म.प्र. 470 113 पं. वंशीधर शास्त्री, बीना उनके प्रथम दर्शन 68 वर्ष पूर्व, सन् 1923 की सुखद बात है, जब मैं ग्यारह वर्ष का था - और प्राईमरी स्कूल, ग्राम सौरई (ललितपुर) में कक्षा तीन में पढ़ता था। ज्ञात हुआ कि ग्राम सादूमल (ललितपुर) में, जो सौरई से 6 मील दूर था, एक दिगम्बर मुनिराज विहार करते हुए पधारे हैं। यह वह समय था, जब किसी दिगम्बर मुनिराज के दर्शन नहीं किये थे और न वे इस प्रदेश में इससे पूर्व आये थे। अतएव स्वभावतः उनके दर्शन की बाल-सुलभ उत्कण्ठा हुई और एक साथी (स्व. सि. हल्केलाल जी) को तैयार कर स्कूल से छुट्टी लिये बिना उनके दर्शनार्थ स्कूल से भाग निकले। रास्ते में एक ऐसी अविस्मृत घटना घटित हुई जो आज भी ताजी है। TE हुआ यह कि हम दोनों ने सोचा कि नास्ता कर लिया जाये। एक कुए पर ना पहुंचे और कुए से पानी निकालने के लिए लोटे को डार में फंसा कर कुए 4 में डाला, संयोग से डोर हाथ से छूट गई और लोटा तथा डोर दोनों कुए । - - - 45 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 4141414141SSIFIFIFIFIFIFI TELETELETELELETELEनानानानानाना
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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