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________________ 15454545454545454545454545454545 H R - R E - जावालोपनिषद्, भिक्षुकोपनिषद आदि में दिगम्बर मुनियों के लिए प्रयुक्त होने म वाले यथाजातरूपधर, शुक्लध्यानपरायण, निष्पर्कग्रह, करपात्र, आदि शब्दों TE 1 का उल्लेख हुआ है, जो उसकाल में दिगम्बर मुनियों की सत्ता के सूचक हैं। - रामायण में राजा दशरथ को श्रमणों के लिए आहार देते हुए दिखाया गया है। जैन रामायण के अनुसार राम ने मुनिदीक्षा लेकर कैवल्य प्राप्त किया। महाभारत में नग्न क्षपणक के रूप में दिगम्बर मुनियों का उल्लेख है। तीर्थङ्कर नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) श्री कृष्ण के चचेरे भाई हैं। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद मगध सम्राट नन्द द्वारा कलिङ्ग विजय के समय कलिङ्ग में अग्रजिन की मूर्ति वापिस लाने की घटना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जो इस बात को व्यक्त करती है कि जिन मूर्ति के लिए राज्यों में युद्ध हुआ करते के। नन्द का मन्त्री राक्षस, मुद्राराक्षस नामक नाटक मे जीवसिद्धि 9 नामक क्षपणक अर्थात् दिगम्बर मुनि के प्रति विनय करता हुआ दिखाया F1 गया है। कहा जाता है कि सम्राट नन्द अपने अन्तिम समय में दि० मुनि हो - गया था। सम्राट चन्द्रगुप्त श्रुतकेवली भद्रबाहु के शिष्य थे। उन्होंने उत्तर भारत से दक्षिण भारत जाकर दिगम्बर मुनि अवस्था मे समाधिमरण किया था। श्रवणवेलगोल का करवप्र नामक पर्वत उन्हीं के कारण चन्द्रगिरि नाम - से विख्यात हुआ। महाराज बिन्दुसार का पुत्र सम्राट अशोक अपने प्रारम्भिक काल में जैन जा न होता तो अहिंसा के इतने गहरे बीज उसके हृदय में सम्भव नहीं थे। - परवर्ती काल में उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। सारनाथ के सिह T: स्तम्भ में चतुर्मुख सिंहों का होना और चक्र में चौबीस अरों का होना इस 1 बात को और दृढ़ कर देता है। ध्यातव्य है कि उस समय तीर्थङ्कर महावीर का काल चल रहा था जिसका चिह्न सिंह ही है। साथ ही चौबीस अरे चौबीस जिन तीर्थङ्करों के प्रतीक है। अशोक ने अपने एक स्तम्भ लेख मे स्पष्टतः निर्ग्रन्थ साधुओं की रक्षा का आदेश निकाला था। सिकन्दर महान के समय भी मुनि श्री कल्याण जैसे तपस्वी थे जिनका सिकन्दर आदर करता था और समय-समय पर उनके दर्शन करता था। कहा तो यहाँ तक जाता है कि सिकन्दर कल्याण मुनि को अपने देश ले गया था और उनसे जैन धर्म । की शिक्षा ली थी। B HTRA - BI प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ L VIII 1545454545454545454545454545455
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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