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________________ 4545454545454545454545454545454 ___ आज. संसार में वर्गभेद एवं विचारमेद के साथ-साथ ईर्ष्या एवं विद्वेषTS जन्य जो अशान्ति सर्वत्र फैल रही है, उसके मूल कारण पाँच पाप ही हैं। स्वार्थपूर्ति न होने के कारण व्यक्ति का मन प्रतिक्रियावादी, क्रोधी एवं हिंसक बन जाने से उसका दुष्प्रभाव उसके स्नायुतन्त्र पर पड़ने लगता है। - फलस्वरूप वह अनेक असाध्य रोगों का शिकार बनता जाता है, जिसका दुष्फल अनिवार्य रूप से उसे ही भोगना पड़ता है। तात्पर्य यह कि धार्मिक LE दृष्टि से तो पूर्वोक्त पापों के त्याग का महत्त्व है ही, व्यक्तिगत सुख, सन्तोष 1 एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उसका विशेष महत्त्व है। चिकित्सकों का भी यह स्पष्ट कथन है कि मन को उद्वेलित करने वाले हिंसादि पापों से बचकर व्यक्ति रक्तचाप, कैंसर, शिरोरोग एवं हृदयरोग जैसी प्राणलेवा बीमारियों से सहज ही मुक्ति पा सकता है। वर्तमान युग में हर व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रस्त है। चोरी, डकैती, बलात्कार, छल-छिद्र, माया, कपट-जाल, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, मिलावट आदि अपराध-कर्मों के बढ़ जाने के कारण शान्त एवं सरल प्रकृति वाले लोगों का जीवन कठिन हो गया है। पुलिस एवं सेना की संख्यातीत वृद्धि तथा नरसंहारक विविध आग्नेयास्त्रों के उत्पादन की होड़ में बड़े-बड़े राष्ट्रों ने येन केन प्रकारेण शोषण करके राष्ट्र-सम्पदा का बहुभाग व्यय कर सामान्य 1 जनता को दरिद्रता के कगार पर खड़ा कर दिया है और साधनविहीन राष्ट्रों को अपना दास बनाकर स्वार्थपूर्ति हेतु वे उनका नाजायज लाभ उठा रहे हैं। इन सभी के मूल में उनकी लोभी-परिग्रही मनोवृत्ति ही है। संक्षेप में कहा जाय, तो इन समस्त सांसारिक समस्याओं का समाधान अणुव्रत अथवा - श्रावकाचार के पालन से सहज में ही हो सकता है। श्रावकाचार वस्तुतः सर्वोदय का ही पर्यायवाची है। यदि श्रावकाचार 卐 का मन, वाणी एवं कर्मपूर्वक निरतिचार (अर्थात् निर्दोष) पालन होने लगे, TE तब तो कोर्ट-कचहरियों एवं थानों में ताले ही पड़ जायेंगे। पुलिस एवं सेना - की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। आत्म-विश्वास, आत्म-गौरव, स्वाभिमान, राष्ट्राभिमा, एवं करुणा स्नेह तथा सभी का हित करने वाली भावना को जगाने TE के लिये "श्रावकाचार' ही सर्वश्रेष्ठ कुंजी है। - आचार्य समन्तभद्र ने पूर्वागत विचार-सरणी को ध्यान में रखते हुए । आज से लगभग 1850 वर्ष पूर्व वृद्धिंगत अपराध-कों को देख-समझकर 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 5475 557565454545454545454545454545556
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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