SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 580
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45454545454545454545454545454545 E -1 व प्रमुख नियम किसी भी प्राणी को दुःख न देना ही अहिंसा है व पांचवा नियम शराब आदि नशीले पदार्थों से परहेज की। पारसी धर्म : जो दुष्ट मनुष्य, पशुओं, भेड़ों और अन्य चौपायों की अनीतिपूर्वक हत्या करता है उसके अंगोपांग तोड़कर छिन्न-भिन्न किये जायेंगे। मानव को प्रत्येक प्राणी का मित्र बनना चाहिये। कन्पयूशस धर्म : जो कार्य तुम्हें अप्रिय है, उसका प्रयोग दूसरों के प्रति न करो। शिन्तो जापान का धर्म : देवता हचिमान ने कहा कि इन निरीह कीड़ियों और मकोडों की रक्षा करो। जो दया करते हैं, उनकी आयु बढ़ती है। लाउत्सो धर्म : जो मनुष्य पूर्ण होना चाहता है वह भूमि से उपजा आहार करे। 51 वैदिक धर्म : हे अग्नि! तूं मांस भक्षकों को अपने ज्वालामुखी मुख में रख प्राणियों की हिंसा किये बिना मांस उत्पन्न नहीं होता और प्राणियों के वध से स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती, इसलिये मनुष्य को मांसाहार का त्याग कर देना चाहिये। (मनुस्मृति अ. 2 श्लोक 47-48) जैन धर्म : अहिंसा जैन धर्म का सबसे प्रमुख सिद्धान्त है। जैन ग्रन्थों में हिंसा के 108 भेद किये गये हैं। भाव हिंसा, द्रव्य हिंसा, स्वयं हिंसा करना, दूसरों - के द्वारा करवाना अथवा सहमति प्रकट करके हिंसा कराना सब वर्जित हैं। हिंसा के विषय में सोचना तक पाप माना है। किसी को ऐसे शब्द कहना जो उसको पीड़ित करें वह भी हिंसा मानी गई है। ऐसे धर्म में जहाँ जानवरों को बांधना, दुःख पहुंचाना, मारना व उन पर अधिक भार लादना तक पाप माना जाता है, वहाँ मांसाहार का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता। इस प्रकार संसार के सभी प्रमुख धर्म मानव को अहिंसोपजीवी होने । - और अन्न, शाक एवं फल खाने का उपदेश देते हैं। इतना ही नहीं सभी महापुरुषों ने भी मांसाहार का निषेध किया है। संसार के सभी महापुरुषों द्वारा मांसाहार की निंदा विश्व इतिहास पर दृष्टि डालने से पता लगता है कि संसार के सभी महापुरुष, चिन्तक, वैज्ञानिक, कलाकार, कवि, लेखक जैसे-पायथगॉरस, A 534 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्था 1514514614 545454545454545454545455
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy