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________________ 45454545454545454545454545454545 आचार्यरत्न सन्मतिदिवाकर 108 श्री विमलसागर जी महाराज का मंगल आशीर्वाद ___ परमपूज्य श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी तपोवृद्ध थे, ध्यानी थे, शांत परिणामी दिगम्बर मुद्रा के धारक थे। उनके प्रशिष्यगण स्मृति ग्रंथ प्रकाशित कर रहे हैं उनके लिये मेरा धन्यवाद है तथा स्मृति ग्रंथ आचार्य परम्परा से युक्त हो और भव्यों को सम्यकत्व का वर्द्धन करने वाला होवे ऐसी हमारी कामना है। उन समान साधु संत बनें/धैर्य युक्त आगमानुसार समाज बने। ग्रंथ को पढ़कर स्व-पर कल्याण करें। आचार्य विमलसागर रामवन (सतना) 29.3.92 चारित्रचक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी के चतुर्थ पट्टाचार्य 108 श्री अजितसागर जी महाराज की विनम्र श्रद्धाञ्जलि स्व. आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज शुद्धाम्नाय के न केवल पोषक थे अपितु इस बीसवीं सदी में इसके प्रवर्तक भी थे। उन्होंने अपने जीवन : काल में स्वहित के साथ-साथ परहित भी किया। अनेक कुरीतियों, अंधविश्वासों एवं मिथ्या मान्यताओं का उन्मूलन कर जनता को मोक्ष का सही मार्ग दिखाया। मैं समस्त संघ के साथ उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। आचार्य अजितसागर महाराज . - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 15454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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