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________________ 5555555555555555 15555555555+++++++++++++! में मारे जाने वालों के लिये हमेशा स्वर्ग में स्थान निश्चित करके ही रक्खा है । हिन्दू धर्म का सर्वश्रेष्ठ धर्म-ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता तो अर्जुन को महाभारत के सर्वसंहारक युद्ध में भाग लेने को तैयार करने के लिये ही कहा गया। ईसाई धर्म में इस्लामी सेनाओं के साथ युद्धों को बहुत सराहनीय माना गया और सारे युद्धों को पादरियों का समर्थन मिला है। इस्लाम धर्म में विधर्मियों के साथ युद्ध को मुसलमान का धार्मिक कर्तव्य ही मान लिया गया है। जैन धर्म में विरोधी हिंसा के रूप में युद्ध को गृहस्थ के लिए मान्यता ही दी गयी है। हिंसक युद्धों में विजयी चक्रवर्तियों को सम्राट भी माना गया है और उसी जीवन में उनके निर्वाण को भी स्वीकार किया गया है। इसी प्रकार बौद्ध धर्म को भी लड़ाकू राज्यों का आश्रय तथा समर्थन प्राप्त था और बौद्ध धर्म ने भी राजाओं द्वारा किये गये युद्धों का विरोध नहीं किया। केवल अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् युद्ध की हिंसा और बर्बादी से क्षुब्ध होकर युद्ध मात्र का स्वयं परित्याग कर दिया। फिर जीवन भर उन्होंने किसी युद्ध में भाग नहीं लिया । सम्राट् अशोक के इस उदाहरण को दुनियां के सारे धर्मों को मान्यता देनी चाहिये और किसी भी प्रकार के युद्ध को हिंसापूर्ण, गर्हित और अधार्मिक करार दिया जाना चाहिये तथा अपने धर्मानुयायियों को किसी भी प्रकार के युद्ध में शामिल होने पर रोक लगानी चाहिये। इसी प्रकार से सेना में भरती होने, सैनिक हथियार तथा साधन बनाने और बेचने के सब तरह के उद्योग-व्यापार को भी हिंसक और अधार्मिक करार दिया जाना चाहिए। जैन धर्म की भाषा में कहा जाय तो श्रावक तथा जैन धर्मानुयायी के लिए विरोधी और औद्योगिकी हिंसाएं भी सब रूपों में अमान्य की जानी चाहिये। दुनियां के सभी धर्मों का विश्व शांति और अहिंसा की दिशा में यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आन्दोलन, कार्यक्रम तथा योगदान होगा। हमारे देश के धर्म-विचारकों तथा आचार्यों को सामूहिक और सामाजिक रूप से हिंसा के इस क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए। दो हजार वर्ष पहले महान् ईसा मसीह ने कहा था कि दुनियां में स्वर्ग लाने के लिये यह आवश्यक है कि दुनियां भर की तलवारों को खेत जोतने के हलों के फालों में बदल दिया जाय। यह करने का वक्त आ गया है। सिद्धान्ताचार्य पं. जवाहरलाल जैन 5 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रथ நிக்க 515 फफफफफ 5555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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