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________________ HTTE भगवान महावीर से चली हुई श्रमण परम्परा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के समवसरण में उनके द्वारा दीक्षित चौदह हजार दि. मुनियों का विपुल संघ था। इनमें से सात सौ मुनिवृन्द IP भगवान के जीवनकाल में ही केवली बन चुके थे और पांच सौ मुनि विपुलमति मनःपर्यय ज्ञान के धारी थे, जो नियम से केवल ज्ञान को प्राप्त हुए होंगे। आर्यिकाओं और श्रावक-श्राविकाओं की विपुल संख्या थी। . भगवान महावीर के निर्वाण होने के बाद उनके संघ के प्रमुख पट्ट पर श्री गौतम- गणधर स्वामी और उनके बाद श्री सुधर्मा स्वामी और उनके बाद श्री जम्बूस्वामी ये तीनों महामुनि 62 वर्ष के भीतर क्रमशः संघनायक हुए और केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्तिधाम पहुंचे। इन बासठ वर्षों के बाद जम्बूस्वामी के प्रमुख शिष्य श्री विष्णु श्रुतकेवली संघ नायक हुए और उनके बाद क्रमशः श्री नंदिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु संघ नायक हुए। इन पांचों श्रुतकेवलियों का काल सौ वर्ष का था। इस तरह 162 वर्ष तक यह परम्परा चली। इसके बाद विशाखाचार्य संघ नायक हुए ये दशपूर्वधारी थे और इनके बाद जो शिष्य परंपरा चली उनमें दस आचार्य भी . दशपूर्व के धारी हुए जिनका काल 183 वर्ष लिखा गया है। दशपूर्वधारी धर्मसेनाचार्य के शिष्य क्रमशः पांच हुए जो ग्यारह अंग के पाठी थे। बाद के चार आचार्य कुछ-कुछ अंगों के ज्ञाता थे इनमें द्वितीय भद्रवाहु आचार्य से "मूलसंघ" की परम्परा आगे बढ़ी। इसके बाद जो आचार्य हुए उनमें अंगपूर्व का ज्ञान परिपूर्ण नहीं रहा. क्रमशः हीन होता गया। जो आचार्य ऊपर लिखी परंपरा में हुए वे ही संघ के अधिनायक होते आये। परंतु जिस संघ के वे अधिनायक थे उस संघ में हमेशा अनेकानेक , मनिथे जो इन पांच सौ पैंसठ वर्षों के भीतर श्रृत केवली, दशपूर्वधारी, ग्यारह अंग के ज्ञाता और कतिचित् अंगों के ज्ञाता हुए होंगे जिनकी संख्या शास्त्रों - में अलग से नहीं दी गई है। मूलसंघ के पट्ट पर द्वितीय भद्रवाहु के शिष्य, अर्हवली जिनका दूसरा नाम गुप्तिगुप्त भी था, वि. स. 26 में पट्टाधीश हुए इस प्रकार श्रुतधर आचार्यों T की परंपरा चली। जो आचार्य पट्ट पर नहीं बैठे उन सब संघ के मुनियों को 1 अपट्टधर की संज्ञा स्वयं प्राप्त है। उनमें आचार्य माघनंदी के काल में प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 4514614514614514614514614514514614545454545 SIT ) 564545454545454545454545454555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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