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________________ 959555555599996555555555 + शलाकापुरुषों की परंपरा को उसमें बैठा दिया गया? अथवा वृहत्कथा की 4 परंपरा को लेकर उसमें शलाका पुरुषों के आख्यान को सम्मिलित किया ना गया? उन्होंने पूर्व पक्ष का समर्थन किया है जो उचित जान पड़ता है। प्रोफेसर । हरमन याकोबी ने जैन परंपरा में हरिवंशपराण के समावेश का समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी माना है, यद्यपि उनके कथनानुसार ईसा की प्रथम शताब्दी के आरंभ में इस आख्यान को अंतिम रूप प्रदान किया गया, जबकि जैनधर्म कृष्ण की कर्मभूमि सौराष्ट्र में पहुंचा और जैन धर्मानुयायी वहाँ बस गये। LFFLF-SELSLSLSLSLS-5-5-5-5-5-5 उल्लेखनीय है कि जैन परंपरा में शलाकापुरुषों अथवा उत्तम पुरुषों की संख्या सुनिश्चित नहीं जान पडती। समवायांग (सूत्र 132) में 54 शलाकापुरुषों का उल्लेख है : 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 नारायण और 9 बलदेव शीलांक के चउप्पन्न महापुरिस चरिय में भी 54 शलाका पुरुषों का ही निर्देश है। इनमें 9 प्रतिनारायण जोड़ देने से इनकी संख्या 63 हो जाती है। जिनसेन ने हरिवंशपुराण और हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित में इसी संख्या को स्वीकार किया हैं अपभ्रंश के महाकवि पुष्पदंत ने भी शलाकापुरुषों की संख्या यही मानी है। भद्रेश्वर ने अपनी कहावली में इस संख्या में 9 नारदों को सम्मिलित कर शलाकापुरुषों की संख्या 72 तक पहुंचा दी है। वस्तुतः शलाकापुरुषों की 54 संख्या भी विचार करने से कसौटी पर खरी नहीं उतरती। 24 तीर्थंकरों और 12 चक्रवर्तियों को छोड़कर शेष 9 बल देवों, 9 वासदेवों और 9 प्रतिवासदेवों का संबंध प्रमुख रूप से वासदेव कृष्ण पर ही आधारित है। इसके सिवाय शांति, कुंथु और अर के नाम - चक्रवर्तियों और तीर्थंकरों दोनों में सम्मिलित किये गये हैं। वसुदेवहिंडि में भी उक्त समस्त तीर्थंकरों, समस्त चक्रवर्तियों, समस्त बलदेवों, समस्त वासुदेवों और समस्त प्रतिवासुदेवों के आख्यानों का प्रतिपादन न कर कुछ TE ही शलाकापुरुषों को प्रमुखता दी गई है। श्वेताम्बरीय समवायांग (24), कल्पसूत्र (6-7) और आवश्यक नियुक्ति (369 आदि) में 24 तीर्थकरों की नामावलि का उल्लेख मिलता है, यद्यपि विचारणीय है कि व्याख्या प्रज्ञप्ति (20.8.675) में कतिपय नामों में भिन्नता पाई जाती है। मथुरा के शिलालेखों में अर तीर्थंकर का नन्द्यावर्त नाम से उल्लेख किया गया है। 12 चक्रवर्तियों का उल्लेख स्थानांग (10.718). 卐SSSS 508 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्या टा - 4444 - - - - -
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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