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________________ 5555555555555555 555555555555555555555 समस्त कलाओं का वास एवं कविजनों का सच्चा दर्पण कहा है। इसकी उपमा साक्षात् सरस्वती से दी गई है जिसकी रचना कमल पर आसीन ब्रह्मा-स्वरूप कवि गुणाढ्य द्वारा की गई। जिनसेन द्वितीय वृहत्कथा से इतने प्रभावित जान पड़ते हैं कि उन्होंने अपनी अद्वितीय रचना आदिपुराण (महापुराण) को सचमुच की वृहत्कथा ही कह डाला। महाकवि धनपाल के निम्न श्लोक पर ध्यान दीजिये : सत्यं वृहत्कथाम्भोधेः, बिन्दुमादाय संस्कृतः । तेनेतरकथा कन्थाः प्रतिभाति तदग्रतः । । यह सत्य है कि कवियों ने वृहत्कथा रूपी समुद्र की एक बूंद को लेकर अपनी कथायें रचीं किन्तु ये कथायें उसके समक्ष एक फटे हुए चीथड़े की भाँति जान पड़ती हैं। वृहत्कथा की लोकप्रियता (1123 गाहा सत्तसई अथवा गाहाकोस के संग्रहकर्ता आन्ध्रवंशीय प्रतिष्ठान ( आधुनिक पैठन, महाराष्ट्र) के शासक, प्राकृत के आसाधारण विद्वान्, कविवत्सल सातवाहन (शालि वाहन) अथवा हाल ने अपने सुप्रसिद्ध संग्रह-ग्रन्थ में पालित्त (पादलिप्त) हरिउड्ड, पोट्टिस, पवरसेण (सुप्रसिद्ध सेतुबन्ध के कर्ता से भिन्न) आदि सर्वश्रेष्ठ कवि एवं रेवा, ससिप्पहा और रोहा आदि सर्वश्रेष्ठ कवयित्रियों के साथ कवि गुणाढ्य का नामोल्लेख किया है जिनके चुने हुए मुक्तक गाहासत्तसई में संग्रहीत हैं। पादलिप्त की भाँति गुणाढ्य भी सातवाहनवंशी राजा हाल की विद्वत् सभा के एक परम आदरणीय श्रेष्ठ कवि गिने जाते थे - अर्थात् ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के पास वे मौजूद थे। जैन विद्वान् सदैव अलौकिक असाधारण एवं अद्भुत कथा-कहानियों की खोज में रहते थे जिन्हें अपना कर वे अपने पाठकों एवं श्रोताओं का मनोरंजन कर धर्मोपदेश का वातावरण तैयार कर सकें। इस लोकरंजक प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए संघदासगणि वाचक ने (ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी). अपने वसुदेवहिंडि, जिनसेन प्रथम (783 ई.) ने हरिवंशपुराण, पंडित श्वेताम्बराचार्य महारक के रूप में प्रसिद्ध मलधारि हेमचन्द्र सूरि ई.) ने भवभावना (वररयण मालिया श्रेष्ठरत्न माला) तथा 'कलिकाल सर्वज्ञ' कहे जाने वाले आचार्य हेमचन्द्र ने (1159-1171 ई.) त्रिषष्टिशलाकापुरुष = फफफफफफफफ चरित में वृहत्कथा के अलौकिक कथानक को अपने असाधारण काव्य कौशल प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 505 卐卐卐卐卐卐卐555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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